नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) का कहना है कि देश को फादर और चादर से मुक्त किया जाना है। वहीं सवाल यह है कि यह संस्कृति किसने देश को दी? 1925 में आरएसएस का गठन हो गया था और आजादी के बाद जो इतिहास, धार्मिक गं्रथ लिखे गये, उसमें सीधा-सीधा आरएसएस का हाथ था। धर्म का व्यापार शुरू किया गया।
इतिहासकारों ने लिखा है कि भारत को आजादी 1947 में मिल गयी थी। इससे पहले 1925 में आरएसएस का गठन हो गया था। कांग्रेस सरकारों से पुरस्कार प्राप्त करने वाले इतिहासकार यह भी बताते हैं कि ब्रिटिश हुकूमत इस देश में थी, जबकि 1947 से पहले जो राज था, वह अमेरिका का था।
लेफ्ट-राइट का कॉम्बिनेशन 1947 की शिक्षा नीति के समय ही आरंभ हो गया था। इस तरह से इतिहासकारों ने वही पढ़ाया जो सरकार चाहती थी। ब्रिटेन तो व्यापार में आज भी सबसे पीछे है। ब्रिटेन की ऐसी कौनसी वस्तुएं हैं, जो भारत या दुनिया के बाजार में बेची अथवा खरीदी जाती हैं, कुछ कार मॉडल्स के अतिरिक्त।
वहीं व्यापार पर तो अमेरिका का कब्जा रहा है। अगर बाजार में जायें तो वहां पर तीन देशों की मुहर लगी हुई वस्तु खरीदनी हो तो सबसे पहले व्यक्ति अमेरिकी कंपनी की ही वस्तु खरीदेगा। चाहे भारत और चाइना की उससे सस्ती ही क्यों नहीं हो। चाइना का माल 100 रुपये, भारत का माल 150 और अमेरिका का 300 है तो भी अमेरिका का ही सामान खरीदा जाना बेहतर समझा जायेगा क्योंकि उसकी विश्वसनीयता है।
चाइना के सामान की कोई गारंटी नहीं है कि वह दुकान में सही चल रही है और घर पहुंचकर चले या नहीं। वहीं भारत में निर्मित वस्तुओं को चलने की तो गारंटी होती है किंतु उसकी मैंटीनेंस बहुत ज्यादा होती है और अमेरिका में निर्मित सामान सालों-साल चलता है, यह विश्वास होता है।
अब आरएसएस कहते हैं कि भारत को फादर-चादर की नहीं सीधी बात करनी चाहिये, सवाल यह है कि यह संस्कृति भारत को दी किसने थी।
भारत की खुफिया एजेंसी रॉ है। अब हर साल रा वण का पुतला जलाया जाता है। एक तरफ कुंभ मेला लगा हुआ है तो दूसरी ओर कुंभकरण का पतला जलाया जाता है।
अमेरिका में दुनिया की सबसे बड़ी कुश्ती का आयोजन प्रत्येक मंगलवार को होता है और उसका नाम रॉ होता है। इसमें दुनिया भर के पहलवान होते हैं। जिन भी देशों को गण तंत्र देश का दर्जा है, वह सभी लोग वहां होते हैं। कुछ रेसल्र्स के पास दो या अधिक देशों का पासपोर्ट होता है। गण का अर्थ हथियार भी होता है।
भारत, अमेरिका सहित कुछ देशों के पास ही परम अणु बम हैं। कुछ देश तकनीक तो रखते हैं लेकिन उनके परम अणु बम असली हैं या नहीं, यह कोई नहीं कह सकता।
दूसरी ओर अगर भारत में धर्म का व्यापार देखा जाये तो यह जीडीपी का लगभग 3 प्रतिशत है। भारत की जीडीपी 3 ट्रिलियन यूएस डॉलर से अधिक की बतायी गयी है और उसमें तीन प्रतिशत हिस्सा एक बड़ा निशान है।
इसी कारण धर्म के लिए कोई जीने को तैयार नहीं है बल्कि मरने और मारने के लिए तैयार होते हैं। धर्म का यह व्यापार देश की चारों दिशाओं में आरएसएस ने आरंभ किया।
खुद को एक शक्तिशाली संस्था के रूप में पेश किया। इसके बावजूद रामलल्ला के दरवाजे 1984 के दंगों के बाद खुले।
राजीव गांधी ने इन दरवाजों को खोला और वे अपनी नीति पर कायम नहीं रह सके और तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एक स्टैण्ड पर नहीं रह पाये। वहां से वे फिर मुड़ गये और देश में उनके पास जो शांति स्थापित करने का मौका था, वे खो गये।
एक तरफ हिन्दू राज की बात कर रहे थे तो दूसरी ओर तीन तलाक का मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट दिया। इस तरह से उन्होंने सीके जाफर शरीफ, गुलाम नबी जैसे नेताओं को आगे आने का मौका दिया और देश में कश्मीर आतंकवाद आरंभ हो गया।
श्रीलंका में तमिल कांग्रेस से जुदा हो गये। देश के आदिवासियों ने हथियार उठा लिये। पंजाब में आतंकवाद चरम पर पहुंच गया। इस तरह से सब तरफ आंतरिक विद्रोह आरंभ हो गया था और राजीव गांधी की सत्ता से विदाई हो गयी। ठाकुर विश्वनाथ प्रताप सिंह ने भी अपनी राजनीति पर खुद कुल्हाड़ी मार ली। वे अपनी राजनीति को अन्य रूप में पेश कर सकते थे।