वाशिंगटन। भारतीय रुपया सोमवार को सप्ताह के पहले कारोबारी सत्र में ही 87 रुपये को पार कर गया। 10 जनवरी को इसने 86 रुपये के अंक को पार किया था। करीबन 20 दिनों के भीतर रुपये के दाम 1 रुपये तक गिर गये। बाजार भी धराशायी हो गये। जो बजट में जादू दिखाने की कोशिश की गयी थी, वह सिफर हो गयी।
नरेन्द्र मोदी का प्रचार तंत्र विदेश और व्यापार नीति का प्रचार करता रहा है। अब 11 सालों बाद मोदी सरकार खुद मान रही है कि उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति कमजोर हो रही है। इस कारण सरकार ने आयकर की सीमा को 12 लाख रुपये तक कर दिया। 1 लाख रुपये कमाने वाला भी अब गरीब कहलायेगा। हालांकि सरकार उसको मुफ्त गेहूं देगी या नहीं, यह नहीं बताया गया है।
एक तरफ सरकार का वचन है कि वह 25 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से बाहर ले आयी है तो दूसरी तरफ वह 80 करोड़ लोगों को मुफ्त गेहूं देने का भी वादा करती है। वहीं 12 लाख रुपये की आय को अब आयकर योग्य नहीं माना जायेगा।
सरकार के यह तीनों वचन एक-दूसरे से मेल नहीं खाते हैं। जब सरकार खुद मान रही है कि उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति कमजोर हो गयी है। बैंकों के पास कैश नहीं है। इसके बावजूद बजट में सरकार का फोक्स रोजगार के अवसर बढ़ाने पर नहीं रहा।
वह लोगों को लोन देना चाहती है। लोन भी 5-10 लाख का जिससे रोजगार भी नहीं चल सके और लोन लेने वाला कर्ज के तले दबता चला जाये।
कोरोना काल में सरकार ने 40 लाख करोड़ रुपये का ऋण देने का एलान किया था। वह राशि कहां गयी। 60 लाख करोड़ रुपये नैशनल हाइवेज पर खर्च कर दिये गये, फिर उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति कैसे कमजोर हो गयी?
इसके बीज 2016 में डाल दिये गये थे और लाखों करोड़ रुपये निकाल लिये गये।
सरकार की कहानी स्वयं बाजार बता रहा है। बाजार में सोमवार को भारतीय रुपया 87 रुपये को पार कर गया। अब नरेन्द्र मोदी विश्व की महाशक्ति कहे जाने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति से मुलाकात करने वाले हैं।
13 फरवरी को बैठक हो सकती है, हालांकि व्हाइट हाउस ने मंगलवार सुबह भारतीय समयानुसार इस संबंध में कोई जानकारी नहीं दी है।
समस्याएं अनेक हैं, क्योंकि दूसरी तरफ ओपेके ने भी कुद्र्ध ऑयल के दाम बढ़ा दिये हैं। इस तरह से आरएसएस की सहयोगी कंपनियां रिलायंस, टाटा, अडाणी, स्वामी रामदेव, जिनको पाकिस्तान सेना की कंपनियां और राजनीति में चाइना की सरकारी कंपनियां भी कहा जाता है, वह भी खतरे के निशान को छू रही हैं। एक तरफ शेयर बाजार में वैल्यू कम हो रही है तो दूसरी ओर डॉलर में भी उनकी नेटवर्थ कमजोर हो रही है। वहीं जो कुद्र्ध ऑयल उनके लिए अब तक सोने का अंडा देने वाली मुर्गी थी, वह भी उनके हाथ से निकल चुका है।
कांग्रेस का 50 वर्ष या भाजपा का 20 साल का राज, हवाला कारोबारियों की बल्ले-बल्ले रही है और यही कारण है कि अडाणी-अम्बानी, स्वामी रामदेव, रतन टाटा जैसे लोगों को देखकर गली मोहल्लों तक हवाला का कारोबार पहुंचा।
छोटे शहरों के छोटे व्यापारियों ने भी अपनाया। जाति, धर्म कोई मतलब नहीं था। सबका एक ही उद्देश्य था, हवाला का कारोबार।
हवाला कारोबारी तो भारतीय संसद, विधानसभाओं तक पहुंच गये। इस तरह से यह कारोबार कई अरब-खरब का पहुंच गया है जो भारतीय अर्थव्यवस्था को दीमक की तरह चाट गया।