चैन्नई। चंदन तस्कर वीरप्पन को जिंदा क्यों नहीं पकड़ा गया। कई हजार करोड़ के इस स्कैम में उसके साथियों के नाम को उजागर क्यों नहीं किया गया।
वीरप्पन के जीवन को लेकर हाल ही में पुष्पा-1 और पुष्पा-2 फिल्मों का निर्माण हुआ। चंदन की तस्करी उसी तरह होती थी, जैसे वर्तमान के साइबर युग में खातों से पैसों को पार कर ले जाना।
झारखण्ड में बैठे लोग जंगलों से एक्सपर्ट बैंकर्स की तरह बात करते हैं और देखते ही देखते बैंक खातों से हजारों रुपये पार हो जाते हैं।
भारत में नयी शिक्षा नीति के बाद साइबर शिक्षा के प्रति लोगों को जागरुक भी किया गया और साइबर थाने भी आरंभ किये गये लेकिन इसके बावजूद बैंकों से राशि को पार किया जा रहा है।
उसी तरह से चंदन सभी नाकाबंदियों को पार करता हुआ अपना माल श्रीलंका, नेपाल, चीन, जापान आदि देशों तक पहुंचा देता था। जैसा कि पुष्पा में दिखाया गया है। हालांकि सवाल यह जिंदा रहेगा कि वीरप्पन को जिंदा क्यों नहीं पकड़ा गया। क्या मॉरिशस का दबाव था क्योंकि वह सबसे बड़ा भारत में निवेशक रहा है। उसके पकड़ में आने पर चंदन तस्करी के स्कैम को कई साल पहले खुलासा कर दिया जाता।
मॉरिशस भी इसका सूत्रधार था और वहां से भारतीय तस्कर इस राशि को शेयर बाजार, रियल इस्टेट अथवा अन्य ज्यादा आय स्रोत में निवेश कर देते थे। सिप भी इनमें एक था।
वहीं चंदन की तस्करी से हटकर पूर्व एक अन्य फिल्म भी आयी थी तारे जमीं पर। आमिर की फिल्म थी। इस फिल्म में ऑटिज्म को प्रदर्शित किया गया था। इस फिल्म में दिखाया गया था कि ऑटिज्म से पीडि़त बच्चे अक्षरों की पहचान अपने तरीके से करते हैं। उन्हें स्कूल शिक्षा में ज्यादा ज्ञान प्राप्त नहीं हो पाता।
इस फिल्म में बताया गया था कि रितिक रोशन, अभिषेक बच्चन भी ऑटिज्म से पीडि़त थे।
वहीं सबसे ज्यादा यह बीमारी अमेरिका में होनी बतायी गयी है। वहां पर इलाज भी बेहतर है। इसके अतिरिक्त श्रीलंका, नेपाल, आदि देशों में भी यह बीमारी काफी अधिक रही है। पाकिस्तान में तो इस बीमारी की अभी तक पहचान ही नहीं हो पायी है।
इस तरह से सत्य घटनाओं को लेकर अनेक फिल्मों का निर्माण हुआ है, यह अलग बात है कि दर्शकों तक वे अपनी बात को खुलकर नहीं पहुंचा सके जिस तरह से अल्लू अर्जुन ने पुष्पा में पहुंचायी है।