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राजस्थान सरकार मजबूर या ब्यूरोक्रेसी हावी

श्रीगंगानगर। राजस्थान में इस समय सरकार की प्राथमिकताओं और विश्वास को लेकर खड़ा हो रहा है। जनमानस को नहीं लग रहा है कि राजस्थान में सत्ता परिवर्तन के बाद कुछ बदलाव हुए हैं।
सीएम भजनलाल के पास अनुभव की कमी साफ दिखाई देती है और वे इस अनुभव की कमी की भरपाई नहीं कर पा रहे हैं। ब्यूरोक्रेसी पर किस प्रकार नियंत्रण किया जाये, यह फार्मूला उनके पास अभी तक आया ही नहीं।
राज हासिल करना और राज का संचालन करना हर किसी के बस की बात नहीं होती है क्योंकि देश-विदेश का दबाव रहता है और इसके बाद ब्यूरोक्रेसी को नियंत्रण में रखना अलग विषय हो जाता है।
सीएम को ब्राह्मण कार्ड के तौर पर मैदान में लाया गया था और हालात देखिये कि राजपूत, जाट, दलित वोट छटक रहे हैं और भाजपा पहले वाली मजबूत पार्टी नहीं रही है। अगर आज सवा साल बाद भी इलेक्शन होते हैं तो 70 सीट को हासिल करना भी मुश्किल हो जायेगा।
दूसरी ओर ब्यूरोक्रेसी नियंत्रण से बाहर हो गयी है। संवैधानिक संस्थानों और धार्मिक स्थानों पर पुलिस नियंत्रण करने का प्रयास कर रही है। संविधान जिसके बारे में लिखा गया है जिसके मन में एक बालक परम अणु होगा और उसके पैर छोटे होंगे। लात पतली होंगी।
उस तरह की परिभाषा को समझने के बावजूद ब्यूरोक्रेसी संविधान के मंदिर में प्रवेश कर जाती है। यह एक बड़ा और जटिल निर्णय है और इस मुद्दे पर सिर्फ बयानबाजी से काम चल जायेगा?
हालात देखिये कि ब्यूरोक्रेसी पर नियंत्रण के लिए जो तबादले होने चाहिये, उस पर भी सरकार नियंत्रण नहीं कर पा रही है और ऐसा लग रहा है कि सबकुछ अपने आप चलता रहेगा। लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि बिहार में जगननाथ मिश्रा, उत्तर प्रदेश में नारायण दत्त तिवारी कांग्रेस के अन्तिम सीएम थे। भाजपा को इतिहास की जानकारी होनी चाहिये।

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