न्यूयार्क। अमेरिका इस समय सबसे तेजी से कार्य करने वाला देश बन चुका है। हर रोज एक नया आदेश जारी हो रहा है। अब नाटो से भी बाहर निकलने की तैयारी में है।
नाटो की स्थापना भारत की कथित आजादी 1947 के बाद हुई थी। हालांकि अधिकांश देश जैसे सिंगापुर, श्रीलंका, बर्मा सहित अनेक कैरेबियाई देश इसके बाद ही आजाद हुए। अगर 1965 का युद्ध देखा जाये तो जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की जान ले ली थी, वह युद्ध के समय ही सिंगापुर को आजादी मिली थी और भारत को न लाहौर मिला न कुछ और। सेना को खाली हाथ लौटना पड़ा।
नाटो ने इराक पर बम बरसाये, वहां पर जांच के बाद पता चला कि कुछ नहीं था। इराक परमाणु बम नहीं बना रहा था। इराक के बाद अफगानिस्तान पर बम गिराये गये और हजारों लोगों की मौत के बाद नाटो के देश खाली हाथ लौट आये। वहां पर फिर से तालिबाज (खुसरो के कबिलेदार) का कब्जा हो गया।
इसी तरह से कुछ और कार्यवाही की गयीं, किंतु इसका नतीजा कुछ भी नहीं निकला। अमेरिका हर साल नाटो पर हजारों नहीं बल्कि अरबों डॉलर खर्च अकेले वहन कर रहा था और यूरोपीय देश अपनी ताकत को बढ़ाने में लगे हुए थे।
यूरोपीय देशों ने रूस से खतरा बताकर अमेरिकी सेना को अपने देशों में रोका हुआ था और अमेरिका इसके बदले में हथियार सप्लाई कर रहा था इस तरह से एटमी जंग का भय बना रहता था।
नाटो से कुछ हासिल नहीं होता देखकर अब अमेरिका अपने अरबों डॉलर को बचाने के लिए यूएन और नाटो से बाहर आ सकता है। यूएन भी धीरे-धीरे अपना अस्तित्व समाप्त होता देख रहा है। खुद महासचिव का कहना है कि जिस तरह की परिस्थितियां वर्तमान में है, उसको ध्यान में रखकर नये पुनर्गठन करने की आवश्यकता है।
इसी तरह से नाटो देश जिसमें अधिकांश यूरोपीय देश हैं। ब्राजील जो ब्रिक्स का भी सदस्य है साथ ही वह नाटो का भी सदस्य है। इस तरह से विरोधाभासी बातें आमने-सामने हैं। चीन ने ही ब्रिक्स का गठन किया था।
चीन और अमेरिका के बीच ट्रेड वॉर चल रही है। इस कारण नाटो के बीच आपसी विचाराधारा मेल नहीं खा रही है। अब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का उद्देश्य है कि एक नयी विचारधारा को जन्म दिया जाये ताकि यूरोपीय देशों के साथ मुकाबला किया जा सके। इस कारण पश्चिमी देशों में पहले जैसी एकता दिखाई नहीं दे रही है और बहुत से यूरोपीय देश चीन की शरण में जा रहे हैं किंतु उनको यह भी ध्यान रखना होगा कि 500 बिलियन डॉलर का व्यापार चीन और अमेरिका के बीच है और चीन टैरिफस के बाद भी कहीं बाहर नहीं जा सकता। यूएस उस पर और टैरिफस लगा देगा तो उसका उद्योग धंधे ठप हो जायेंगे। वहीं ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि भारत के चुनाव आयोग ने नोटा शब्द का इस्तेमाल आरंभ किया था। नाटो और नोटा के अंदर सिर्फ एक शब्द का अंतर है। इस तरह से इसका उच्चारण वही है।