श्रीगंगानगर। इस समय भारत में इस बात की चिंता हो रही है कि वख बोर्ड को समाप्त करने से क्या हासिल होगा या कुछ फायदा होगा।
वख बोर्ड का अर्थ है संविधान के बराबर धार्मिक संस्था। जैसे अमेरिका के भीतर डाई कार्यक्रम शिक्षा विभाग के अधीन चलाया जा रहा था और 1.6 ट्रिलियन डॉलर खर्च किये जा रहे थे। वैसे ही भारतमं वख बोर्ड है। इसमें सभी धर्मों के नेताओं को वेतन, भत्ते आदि का भुगतान किया जाता है।
वख बोर्ड को संविधान के बराबर इसलिए कहा जाता है क्योंकि संविधान में संशोधन से पहले इस प्रस्ताव को वख बोर्ड के पास ले जाया जाता है।
वहां से मंजूरी मिलने के उपरांत इसको सदन में लाया जाता है। संसद में प्रस्ताव पारित हो जाता है और फिर राष्ट्रपति की मुहर लगकर यह बिल तैयार हो जाता है। इसे देश में लागू कर दिया जाता है। इस तरह से संसद में जो राजनीति का एक नाटक चलता है, वह हमेशा के लिए बंद हो जायेगा।
संसद में वेतन और भत्ते बढ़ाये जाने का निर्णय लिया गया है। यह एक स्वागत योग्य कदम है, इनके भत्तों ओर वेतन में वार्षिक दर पर बढ़ोतरी होनी चाहिये। यह इतनी होनी चाहिये कि इनको अपनी हार का भय हर पल सताये। इस तरह से यह पब्लिक की बात भी सुनेंगे और जनता के बीच भी दिखाई देंगे।
वेतन कम होने के कारण सांसद हो या विधायक उसके खर्चों की पूर्ति सरकारी दर पर मिलने वाले भुगतान से पूरी नहीं हो पाती है।
अब वख बोर्ड की चिंता करें तो इसको हमेशा के लिए समाप्त कर देना चाहिये। इसके बद होने का लाभ यह होगा कि अपरोक्ष रूप से जो पैसा विदेश, देश से जारी होता है, इस बोर्ड के लिए वह बंद हो जायेगा।
मुसलमानों को आसान न्याय पाना है तो इस बोर्ड के बंद होने का इंतजार करना चाहिये। इस बोर्ड के भंग होने के बाद कभी आतंकवादी घटना नहीं होगी और मुसलमानों को जेल जैसी यातनाओं के कारण देश में जो हिंसक टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है, वह समाप्त हो जायेगा।
वख बोर्ड के नाम से मुस्लिम नेताओं को शामिल किया जाता है लेकिन यह दुनिया भर में जो आतंकवादी घटनाएं होती हैं, उसमें सुधार के लिए एक रुपया खर्च नहीं करते। कभी सरकार को पत्र नहीं लिखते कि सिर्फ मुसलमानों को ही आतंकवादी के रूप में टारगेट किया जाता है।
संविधान की बात करें तो इस समय उसमें इतने अनु छेद हो चुके हैं कि अब और गुंजाइश नहीं है। इसलिए वख बोर्ड का समाप्त होना उतना ही जरूरी है जितना एक इंसान के लिए भोजन, परिवार का सुख आवश्यक होता है। अरबी ताकतों की ओर उन्हें नहीं देखना चाहिये क्योंकि एक करोड़ देंगे तो विभिन्न रूप में 10 करोड़ आपसे खींचकर ले जायेंगे। उनके पास एक सशक्त टीम है। जो हर पल कार्य करती है, उनकी राजनीति को समझना आसान कार्य नहीं है या कहें कि एक कमजोर वर्ग के लिए तो यह बस की बात नहीं होती।
वख बोर्ड को समाप्त किये जाने के नुकसान से ज्यादा लाभ होने की संभावना है। अगर वोट भी धर्म के आधार पर नहीं बंटेगा तो निश्चित रूप से जो अलग थलग वर्ग हुए हैं, वे भी समानता के हकदार हो जायेंगे।
भ्रष्टाचार के मामले में न्यायपालिका भी सफेदपोश नहीं
श्रीगंगानगर। अगर देश और दुनिया को देखा जाये तो भ्रष्टाचार में न्यायपालिका भी शामिल है और अनेक न्याययिक अधिकारी रिश्वत लेते हैं। अमेरिका और भारत दोनों ही देश में अधिकारियों के व्यवहार, पारदर्शिता और न्याय को लेकर सवाल उठ रहे हैं।
अमेरिका में एक जिलास्तरीय जज ने अमेरिका के राष्ट्रपति के अधिकारों में हस्ताक्षेप कर दिया। अवैध आर्वजन के मामले में मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के आदेशों में उन्होंने हस्ताक्षेप कर दिया।
इसी तरह से भारत में एक हाइकोर्ट जज के घर से भारी नकदी के मामले में कार्यवाही की मांग को लेकर आंदोलन चल रहा है। हाइकोर्ट के अधिकारी के तबादला कर सुप्रीम कोर्ट ने अपना पिंड छुड़ाने की कोशिश की।
इससे मामला और गहरा गया।
अब सवाल यह है कि न्यायपालिका को भी जवाबदेही बनाया जाना चाहिये या नहीं। सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्ट के न्यायधीश ही नियुक्तियों और अन्य प्रकार के फैसले लेते रहे हैं। इनसे यह अधिकार छीनकर एक पारदर्शी संस्था बनानी जानी चाहिये।
यह संस्था एक ऐसा सॉफ्टवेयर तैयार करे जो परीक्षा के तुरंत बाद ही आंसर शीट सहित उसके नंबर उसको पकड़ा दे। ऐस मनीपाल यूनिवर्सिटी में होता रहा है। कम्प्युटर ही बता देता था कि आप योग्य हो या नहीं। प्रवेश उसी आधार पर होते थे।
इसी तरह से ऐसी ही पारदर्शी व्यवस्था ट्रांसफर, नियुक्ति, परीक्षा के समय होनी चाहिये और न्यायाधीशों को जातिगत आधार पर नहीं हो। एक जाति में कितने मेम्बर हो सकते हैं, इसका भी ध्यान होना चाहिये ताकि एक ही जाति के पेपर को लीक कर अध्यक्ष नहीं बनते रहें।
जिला स्तर पर जजों के पेशकार सरेआम तारीख निर्धारित करने के लिए पैसों का व्यवहार करते हैं। तारीख भी कम्प्युटराइज्ड होनी चाहिये।