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मणिपुर क्यों नहीं जाते मोदी-शाह

श्रीगंगानगर। भारत के गृहमंत्री अमित शाह मणिपुर का दौरा क्यों नहीं करते। न भारत गणराज्य सरकार के प्रधानमंत्री वहां जाते हैं। मणिपुर से जो समाचार आते हैं वह भी भ्रामक हैं।
मणिपुर बरसों से हिंसा का शिकार रहा है किंतु पिछले 10 सालों में हालात खराब होते चले गये। समाचारों में बताया गया है कि वहां पर हिंसक घटनाएं हो रही है।
अब इस खबर की पड़ताल में सामने आया है कि बर्मा अर्थात म्यांमार के रास्ते से अमेरिकी सेना मणिपुर की ओर बढ़ चुकी हैं। देश से बहुत कुछ छुपाया जा रहा है। अमेरिका के अधिकारी बार-बार आकर चेतावनी दे रहे हैं कि मोदी सरकार अपने व्यवहार में सुधार करे।
अब मणिपुर अमेरिकन सेना के पास है। संभव है कि आने वाले दिनों में पूर्वोत्तर के अन्य राज्य तक भी सेना पहुंच जाये। रोजाना बातचीत हो रही है, लेकिन नतीजा नहीं निकल रहा। हाल ही में पीएम अमेरिका यात्रा रही थी और इसके बाद खुफिया एजेंसी प्रभारी को राष्ट्रपति के विशेष दूत के रूप में तुलसी गैबार्ड को भेजा गया था।
मोदी के साथ भ्रष्टाचार में शामिल यूूरोपिय देशों के कम से कम दो देशों का समर्थन है। यह दोनों देश वार्ता के जरिये हल निकालने की बात कह रहे हैं लेकिन तीन सालों की वार्ता के बाद भी हालात जस के तस है।
वहीं मणिपुर के लिए सेना की कोर कमान को भी भेजा जा रहा है लेकिन मोदी मणिपुर पर कोई वार्ता नहीं करना चाहते। हाल ही में यूएस की यात्रा के दौरान पत्रकार ने भी सवाल किया था जिसके जवाब में मोदी ने कहा था कि यह घर की बात है।
अगर घर की बात थी तो आकर वार्ता क्यों नहीं की।
यह एक मसला नहीं है, बल्कि अनेक सवाल हैं। आजादी के बाद देश में पंचायती राज संस्थाओं का पुन: सीमांकन अथवा पंचायतों का पुनर्गठन नहीं हुआ है। भारत सरकार मतगणना भी नहीं करवाना चाहती। वह चुनाव सुधार पर जोर देकर तमिलनाडू का हिस्सा डकारना चाहती है।
दूसरी ओर वक्फ बोर्ड में संशोधन को लेकर भी बवाल मचा हुआ है। देश को नहीं बताया जा रहा है कि आखिर यह वक्ख बोर्ड है क्या। अगर वख बोर्ड की सम्पत्ति को छीन लिया गया तो यह समझिये कि विदेशी ताकतें भी आपकी सहायता नहीं कर पायेंगी।
तमिलनाडू, पंजाब ऐसे दो राज्य हैं, जहां पर बीजेपी को कोई नहीं पूछ रहा है। कुछ माह पूर्व सदस्यता अभियान चलाया गया और मिस कॉल के जरिये सदस्यता चलाने का निर्णय लिया गया था किंतु हालत यह थी कि 10 प्रतिशत भी कार्यकर्ताओं ने मिस कॉल के जरिये भी अपनी हाजरी नहीं लगवायी थी और इसके बाद ऑफलाइन सदस्य बनाये गये।
जहां पर कल मोदी-मोदी जिंदाबाद के नारे थे। वहां पर जागरुकता आने के बाद माहौल खराब हो गया है। मोदी बार-बार कह रहे थे कि तुम दो कदम चलो, मैं 10 कदम चलूंगा। इस कारण वे 10 सालों से आरएसएस के कार्यालय भी नहीं गये थे किंतु अब जाना पड़ रहा है।
वहीं अमेरिका एक साल से भी कम समय में मोदी को तीन बार बुला चुका है। हालात सुधारने की चेतावनी दी गयी है किंतु कोई असर नहीं हो रहा है। भारत देश की सरकार ही जब हवाला कारोबार में शामिल हो गयी हो तो उस समय अन्य देशों की आर्थिक व्यवस्था पर भी असर पड़ता है।
म्यांमार में बैठी अमेरिकी सेना के भय से मोदी या शाह मणिपुर भी नहीं जाना चाहते। वहां पर सरकार भंग हो गयी है और गृह मंत्रालय के पूर्व सचिव अजय भल्ला को वहां का राज्यपाल कागजों में बना दिया गया है। हालात खराब हैं और भारत सरकार या गोदी मीडिया कुछ भी बताने को तैयार नहीं है।

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