श्रीगंगानगर। भारतीय फिल्मों का निर्माण जब किया जाता है तो उसमें कम से कम एक विलेन अवश्य लिया जाता है। हीरो के साथ एक कॉमेडियन और एक विलेन। इसके साथ एक होती है हेरोइन जो सिर्फ गानों और नाच करने तक ही सीमित होती है।
एक रियल स्टोरी भी चल रही है। इस रियल स्टोरी में 1990 के दशक की तरह अमीर-गरीब का खेल भी है। अब समझ नहीं आ रहा कि विलेन की भूमिका कौन निभा रहा है।
कुछ लोगों के नाम रखते हैं जैसे हीरो का नाम सचिन है, हीरोइन का नाम अनामिका है और विलेन का नाम अमरीश पुरी है। अमरीश पुरी का हीरो और हेरोइन के परिवार से कोई वास्ता नहीं है, फिर भी वह एक विलेन की भूमिका में नजर आता है और अनामिका को नहीं कहता, ‘जा जी ले अपनी जिंदगी।’
यह दो दिलों की प्रेम कहानी है। सचिन और अनामिका व्यक्तिगत रूप से कभी नहीं मिले, लेकिन दोनों के कार्य पसंद आते हैं और वे आपस में अटैच हो जाते हैं। इस तरह से कहानी को बढ़ते-बढ़ते 7 वर्ष बीत जाते हैं।
अब दो दिलों के मिलन का समय आता है तो अमरीश पुरी सामने आ जाता है। अमरीश पुरी का इससे क्या फायदा हो रहा है, यह किसी को समझ नहीं आ रहा है। हां अमरीश पुरी के कारण उसके आसपास के एरिये में उसके नाम की दहशत अवश्य देखी जा सकती है।
अनामिका के पिता का दावा होता है कि वह अपनी पुत्री का विवाह सचिन से ही करवायेगा। इस तरह से कहानी आगे बढ़ती है और अनेक प्रकार के ट्वीस्ट सामने आते हैं।
इस कहानी का मौरल पता चले तो अवश्य बताना।
वहीं सचिन और अनामिका हर रोज यही सोचते हैं कि कहीं न कहीं एक दिन वे अवश्य मिलेंगे। यह काफी रहस्यों से भरी कहानी है और अगर किसी को पसंद आये तो लाइक करना मत भूलना।
अमरीश पुरी जो खलनायक है। वह खलनायक क्यों बने हैं। अगर वे नहीं है तो कौन खलनायक की भूमिका निभाते हुए सचिन-अनामिका के रिश्तों की सडक़ पर रोज नये कांटे बीज देता है।
अमरीश पुरी ऑटिज्म नहीं है और वे आधुनिक काल के सबसे बड़े खलनायक है और उन्होंने खलनायक की भावना को भी ऊंची किया है किंतु इस सच्ची प्रेम कथा में वे ऐसा क्यों नहीं करना चाहते।
फिल्हाल जिंदगी उलझ रही हे और सचिन सुबह से लेकर शाम तक अपनी प्रेमिका का इंतजार करता है किंतु वह वादा करके भी नहीं आती है और इस कारण् सचिन मुकेश कुमार के दर्द भरे नगामों को चुनना पसंद करता है।