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क्या मोदी को जिद्द का त्याग कर देना चाहिये

श्रीगंगानगर। भारत सहित दुनिया भर के प्रमुख देश अमेरिका, रूस, ईरान आदि युद्ध के मुहाने पर खड़े हैं। एक पल की देरी दुनिया पर भारी पड़ सकती है। इतने बुरे हालात के लिए भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सीधे तौर पर सामने आते हैं।
अमेरिका ने पिछले एक वर्ष के दौरान मोदी को तीन बार अमेरिका आमंत्रित किया है। उनके साथ वार्ता कर सम्मान भी किया गया ताकि दुनिया में गलत संदेश नहीं जाये।
यूक्रेन-रूस युद्ध का अर्थ पूरी दुनिया तक पहुंच चुका है और उसके बारे में ज्यादा बताने की आवश्यकता भी नहीं रही है। अब बात सीधे तौर पर की जाये तो मोदी इस समय दुनिया के सामने एक बड़े संकट को आने दे रहे हैं और उनका मानना है कि इससे वे विश्व गुरु बनकर सुलटा सकते हैं।
हकीकत यह है कि अगर अमेरिका-ईरान की जंग एक बार आरंभ हो गयी तो ग्लफ के देशों और यूरोप के बीच तनाव बढ़ सकता है। इजरायल की प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतनयाहू भी लगातार विदेशी नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं। आज भी वे हंगरी के राष्ट्रपति के साथ चर्चा कर रहे हैं।
अमेरिका ने मोदी को जिम्मेदारी दी थी कि वे यूक्रेन युद्ध को रूकवाएं, लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाये। क्यों नहीं करपाये? वे यह नहीं चाहते थे कि युद्ध समाप्त हो। अमेरिका ने युद्ध कर रहे देशों के बीच 30 दिन का शांति समझौता भी करवाया लेकिन इसके बावजूद मिसाइलों को गिराया जा रहा है।
इन सबका एक ही अर्थ है कि अमेरिका को अब नरेन्द्र मोदी पर दबाव बनाना होगा और बार-बार दुनिया के सामने मोदी को अच्छा मित्र बताकर वे उनको शाबाशी नहीं दे सकते। वल्र्ड वॉर से कितने करोड़ लोगों की जान जा सकती है। मोदी पर अमेरिका का दबाव आवश्यक है ताकि विश्व में शांति स्थापित हो।
अब तक अमेरिका स्वयं युद्ध करवाता रहा है ताकि उसके हथियारों के निर्यात को गति मिले, लेकिन ट्रम्प पहले शख्स हैं जो चाहते हैं कि अमेरिका को युद्ध में नहीं आना पड़े, लेकिन न चाहते हुए भी अब हिन्द महासागर में मिसाइलों को तैयार कर दिया गया है। यह कभी भी अपना असर दिखाना आरंभ कर सकती है। महासागर के चारों दिशाओं में नाटो देशों ने अपने हथियार लगाये हुए हैं।

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