लुधियाना शहर, पंजाब का एक महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र, अपनी जीवंतता और उद्यमशीलता के लिए जाना जाता है। लेकिन इस चमक-दमक के पीछे एक गहरी और चिंताजनक कहानी छिपी है – बुड्ढा नाला का प्रदूषण। यह मौसमी नाला, जो कभी शहर की जीवन रेखा हुआ करता था, आज एक जहरीली धारा में तब्दील हो चुका है, जो ताजपुर रोड से लेकर सतलुज नदी के संगम तक अपने साथ प्रदूषण का एक लंबा और दुखद सफर तय करता है।
ताजपुर रोड, शहर के उत्तरी हिस्से में स्थित है, जहाँ से बुड्ढा नाला एक पतली धारा के रूप में शुरू होता है। यहाँ अभी भी कुछ हरियाली और सामान्य जीवन के अवशेष दिखाई देते हैं। लेकिन जैसे-जैसे नाला शहर के भीतर प्रवेश करता है, इसकी कहानी बदलने लगती है। औद्योगिक इकाइयों और घनी आबादी वाले इलाकों से गुजरते हुए, यह नाला धीरे-धीरे औद्योगिक कचरे, घरेलू सीवेज और अन्य हानिकारक पदार्थों का अड्डा बन जाता है।
कपड़ा रंगाई की इकाइयाँ, धातु उद्योग, और विभिन्न छोटे-बड़े कारखाने बिना किसी उचित उपचार के अपना कचरा सीधे नाले में बहाते हैं। रंग-बिरंगे रासायनिक अवशेष पानी के रंग को बदल देते हैं, और तीखी गंध हवा में घुल जाती है। प्लास्टिक की थैलियाँ, पॉलीथीन और अन्य ठोस कचरा नाले के किनारों पर और पानी में तैरता हुआ एक भयानक दृश्य प्रस्तुत करता है।
जैसे-जैसे बुड्ढा नाला शहर के हृदयस्थल की ओर बढ़ता है, प्रदूषण का स्तर और भी खतरनाक हो जाता है। घनी आबादी वाले इलाकों के घरों से निकलने वाला अनुपचारित सीवेज भी इसी नाले में मिलता है। नालियों का गंदा पानी, जिसमें मल-मूत्र और अन्य हानिकारक बैक्टीरिया होते हैं, नाले को और भी दूषित कर देता है।
नाले के किनारे रहने वाले लोग इस प्रदूषण के सबसे बुरे शिकार हैं। उन्हें दूषित हवा में सांस लेने और संभावित रूप से दूषित पानी के संपर्क में आने के लिए मजबूर होना पड़ता है। त्वचा रोग, सांस की समस्याएं और पेट संबंधी बीमारियां यहाँ आम हैं। बच्चे और बुजुर्ग विशेष रूप से इस प्रदूषण के प्रति संवेदनशील हैं।
बुड्ढा नाला शहर के कई महत्वपूर्ण इलाकों से गुजरता है। सड़कें इसके समानांतर चलती हैं, पुल इसे पार करते हैं, और लोग अपनी दैनिक गतिविधियों में अनजाने में ही इस प्रदूषण के संपर्क में आते रहते हैं। कभी-कभी, भारी बारिश के कारण नाले का पानी उफान पर आ जाता है और आसपास के इलाकों में फैल जाता है, जिससे बीमारियां और भी तेजी से फैलने का खतरा बढ़ जाता है।
शहर के दक्षिणी छोर की ओर बढ़ते हुए, बुड्ढा नाला अपने साथ लाए गए प्रदूषण के बोझ से और भी भारी हो जाता है। आखिरकार, यह सतलज नदी में मिल जाता है, जो पंजाब की एक महत्वपूर्ण जीवनदायिनी नदी है। बुड्ढा नाला का प्रदूषित पानी सतलज के पानी की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है, जिससे न केवल लुधियाना बल्कि आगे के क्षेत्रों में भी जलीय जीवन और मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
ताजपुर रोड से शुरू होकर सतलज के संगम तक, बुड्ढा नाला की कहानी लापरवाही, उदासीनता और पर्यावरण के प्रति संवेदनहीनता की कहानी है। यह एक ऐसी कहानी है जो दिखाती है कि कैसे विकास और औद्योगिकीकरण के नाम पर हमने अपने प्राकृतिक संसाधनों को बुरी तरह से प्रदूषित कर दिया है।
आज, बुड्ढा नाला के प्रदूषण को लेकर जागरूकता बढ़ रही है। सरकार और गैर-सरकारी संगठन इस समस्या के समाधान के लिए प्रयास कर रहे हैं। औद्योगिक इकाइयों को अपने कचरे का उचित उपचार करने के लिए दबाव डाला जा रहा है, और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की योजनाएं बनाई जा रही हैं। लेकिन यह एक लंबी और कठिन लड़ाई है।
बुड्ढा नाला को उसकी खोई हुई गरिमा वापस दिलाने और सतलज नदी को प्रदूषण से बचाने के लिए एक सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। हमें अपनी आदतों को बदलना होगा, पर्यावरण के प्रति अधिक जिम्मेदार बनना होगा, और यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य की पीढ़ियों को स्वच्छ हवा और पानी मिल सके। ताजपुर रोड से सतलज के संगम तक बहती हुई बुड्ढा नाला की प्रदूषित कहानी एक चेतावनी है, एक याद दिलाती है कि अगर हमने अब कार्रवाई नहीं की, तो इसके परिणाम और भी भयावह हो सकते हैं।