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जम्बो कैबिनेट बनाती हैं इंस्पेक्टर राज को मजबूत

न्यूयार्क। भारत के 2014 में चुनाव अभियान को देखा जाये तो उस समय बीजेपी की तरफ से चुनाव प्रचार कर रहे नरेन्द्र मोदी ने मिनियम गर्वनमेंट मैक्सियम गर्वनेंस का नारा दिया था। अगर उसके बाद के 11 साल या उससे ज्यादा के वक्त को देखें तो यह नारा कहीं दिखाई ही नहीं दिया।
विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, सबसे प्राचीन लोकतांत्रिक देश संयुक्त राज्य अमेरिका को देखा जाये तो उसकी सरकार में सिर्फ 15 कैबिनेट सदस्य हैं। भारत पर शासन करने वाली ब्रिटेन की सत्ता को देखा जाये तो वहां पर करीबन 20 संघीय मंत्री हैं। अन्य विकसित देशों की बात करें तो यही तस्वीर सामने आती है।
वहीं हम भारत की बात करें तो करीबन 75 सदस्य कैबिनेट में हैं। इसको कहा जाता है जम्बो कैबिनेट। एक ही विभाग में एक से ज्यादा मंत्री बनाये जाते हैं। कबीना मंत्री के अधीनस्थ राज्यमंत्री नियुक्त किये जाते हैं। इसके अतिरिक्त सरकार के पास हर विषय विशेषज्ञ भी सलाहकार के तौर पर काम करते हैं। इसके बाद भी हम देश से गरीबी, दलितों का शोषण, आदिवासियों का अधिकार पर काम नहीं कर पाये।
भारी-भरकम कैबिनेट का क्या अर्थ?
अगर अमेरिका को देखा जाये तो राष्ट्रपति सीधे तौर पर अपने मंत्रियों का चयन करते हैं। मंत्री अगर चुनाव नहीं लड़ें हैं तो भी काम चलेगा। संसद राष्ट्रपति के अधिकारों पर मुहर लगाकर उनके चयन को प्रमाणित करता है। भारत में कैबिनेट या राज्यमंत्री अथवा उप मंत्री को चुनाव लडऩा आवश्यक है चाहे वह राज्यसभा या लोकसभा का हो, उसको निर्वाचित होना जरूरी है।
भ्रष्टाचार के आलम का एक कारण यह भी
भारत में दुनिया की सबसे ज्यादा गरीबी है। बांग्लादेश-पाकिस्तान, हूति जैसे देशों में भी हमारे से कम गरीबी है। इसके बाद भी जनता पर एक भारी-भरकम बोझा डाला जाता है, जिसको मंत्रीपरिषद का नाम दिया गया है। इंडिया के भीतर चुनाव का टिकट, मंत्रीपरिषद की लॉटरी आदि किस प्लेफार्म पर मिलते हैं और उसकी शर्तें क्या होती हैं, इस भाग को जानने वाले को ही आगे बढऩे का मौका मिलता है। टिकट के चयन का तरीका क्या रहता है, यह किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है। इसी तरह से मंत्रीपरिषद का सदस्य किसे बनाये जाना है, यह भी भाग्य नहीं बल्कि अन्य कारक काम करते हैं।
जम्बो कार्यकारिणी क्यों?
50 राज्यों को जोडक़र एक देश बनाया गया है जिसको संयुक्त राज्य अमेरिका कहा जाता है। वहां पर राज्य सरकारों के पास ज्यादा अधिकार हैं। इसके उपरांत भी वहां पर केवल 15 सदस्य ही मंत्रीपरिषद में शामिल किये जाते हैं। भारत में मंत्रीपरिषद का टिकट लेने के लिए जाति, धर्म, राज्य भी निर्भर करते हैं। पार्टियों के लिए फंड जुटाने के नाम पर चंदा लिया जाता है। भारत में अधिकांश मंत्रियों के पास कोई बड़ा बिजनेस हीं है। संसद सदस्य भी फुल टाइम राजनीति करते हैं, इसके उपरांत भी पांच सालों बाद उनकी आय अरबपति के बराबर हो जाती है।
बजट का प्रावधान
भारत सरकार हर साल लगभग 40 लाख करोड़ का बजट पारित करती है। इसमें अनुमान लगाया जाता है कि कितना व्यय होगा और कितनी आय होगी। आय से अर्थ राज्य सरकार पेट्रोल-डीजल पर वैट, उत्पाद कर, अन्य विशिष्ट वस्तुओं पर जीएसटी, आयकर आदि शामिल हैं। इस तरह से राशि को जुटाया जाता है। वित्त मंत्री इसके बाद सभी विभागों को बजट जारी करते हैं, जैसे समाज कल्याण, गृह मंत्रालय, रेल, स्वास्थ्य सहित सभी मंत्रालयों को शामिल किया जाता है और मंत्री की अप्रोच के अनुसार बजट जारी हो जाता है। मंत्री का बड़ा चेहरा है तो बड़ा बजट और छोटा है तो उसके अनुसार काम चलाने के लिए बजट।
राज्यों को भी दिया जाता है हिस्सा
राज्यों को पहले वैट की आय होती थी जिसको अब जीएसटी में शामिल कर लिया गया है अर्थात अब राज्यों की आय का स्रोत केन्द्र से मिलने वाला हिस्सा रह गया है। शराब, पेट्रोल के अलावा सरकार के पास आय का अन्य स्रोत न के बराबर है। केन्द्र राज्यों को बजट जारी करता है।
हालांकि भारत सरकार वैट, जीएसटी, उत्पाद, आयकर आदि वसूलने के बाद भी ग्राम पंचायतों, नगर निकायों को पत्र लिखती है कि वे स्वावलंबी बनें अर्थात अपनी आय का स्रोत बनायें? यह स्रोत होगा, जनता पर नये टैक्स लगाकर। टैक्स आतंकवाद का जाल बिछाने के बाद भी सरकार मानती है कि इंस्पेक्टर राज को और मजबूत किया जाये।
इंस्पेक्टर राज क्यों चलाती है सरकार?
हर नेता का सपना होता है कि वह मंत्री बनें। मंत्री बनने का अर्थ ही हो जाता है कि सरकार के हिस्से पर अपना हक जताना। इससे इंस्पेक्टर राज का जन्म होता है। एक ही मंत्रालय को विभिन्न विभागों में बांटा गया है। इतने ज्यादा डिपार्टमेंट बनाये गये हैं कि एक ही मंत्रालय में दो या इससे भी ज्यादा मंत्री बैठाये जाते हैं। नाम अलग-अलग हो सकता है। अब वित्त मंत्रालय को ही देखें जिसको ट्रेजरी कहा जाता है, उसमें कार्पोरेट मंत्रालय, वाणिज्य मंत्रालय, उद्योग मंत्रालय अलग-अलग हैं और सभी के अपने मंत्री हैं और मंत्रियों के नीचे अधिकारी हैं जो इंस्पेक्टर राज की प्रथा को कायम रखते हैं।
अब उद्योग मंत्रालय में भी कपड़ा, इस्पात आदि के भी कई मंत्रालय हैं। परिवहन के लिए उड्यन, परिवहन, रेल, सार्वजनिक विकास मंत्रालय आदि विभाग बनाये गये हैं। सबके अपने-अपने मंत्री हैं। अब इतने मंत्री बनाने का कारण यह हो जाता है कि संबंधित राज्य, संबंधित जाति आदि को भी देखा जाता है। हालांकि मंत्री बनते ही राज्य, जाति को भूला दिया जाता है और स्वविकास एक नया नारा पैदा हो जाता है।
राज्यों के अधिकारों में हस्ताक्षेप
विदेश, रक्षा, रेल जैसे कुछ विषयों को छोड़ दिया जाये तो गृह, शहरी विकास, नगर विकास, ग्रामीण विकास सहित सभी विभाग राज्यों के पास भी हैं। अब यहीं पर एक लड़ाई आरंभ होती है जिसको हस्ताक्षेप कहा जाता है। जब शहरी, नगर, ग्रामीण आदि का काम राज्यसरकारों ने करवाना है तो उस समय केन्द्रीय मंत्रालय की क्या भूमिका हो जाती है? असल में यह विदेशों से मिलने वाली सहायता की भी लड़ाई है। अमेरिका ने विदेशी फंडिंग पर रोक लगा दी है। ब्रिटेन, फ्रांस, इटली अभी भी मैदान में हैं।
इतने विभागों के कारण ही इंस्पेक्टर राज है। मिनियम गर्वनमेंट मैक्सियम गर्वनेंस का नारा तो 2014 में ही भुला दिया गया। हर विभाग के पास अपने इंस्पेक्टर हैं। इसी कारण कहा जाता है कि भारत में व्यापार करना आसान कार्य नहीं है।

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