श्रीगंगानगर। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 28 लोगों की निर्मम हत्या के उपरांत पाकिस्तान के साथ कई तरह के वर्षों पुराने एग्रीमेंट को निरस्त कर दिया गया है। इनमें सिंधू जल समझौता, अटारी चेकपोस्ट और राजनीयिक संबंध भी समाप्त किये जा रहे हैं।
भारत ने 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध करते हुए पूर्वी पाकिस्तान को अपने कब्जे में ले लिया था और उसे आजाद घोषित किया गया। बांग्लादेश का सृजन हुआ था। पहले वह बंगाल से पूर्वी पाकिस्तान बना और फिर बांग्लादेश बना।
वर्ष 1999 में मई माह में कारगिल की पहाडिय़ों पर आतंकियों ने कब्जे कर लिये थे। उस समय भारत ने अपने युद्धकाल को कश्मीर की घाटी तक ही सीमित रखा था और देश के अन्य बॉर्डर को नहीं खोला गया था। वहीं अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय भी आतंकवादियों ने संसद पर हमला कर दिया था।
वाजपेयी सरकार ने सेना को मोर्चा संभालने का आदेश दे दिया था और बॉर्डर पर महीनों तक सेना मौजूद रही। माइंस बिछा दी गयीं। हालांकि वाजपेयी सरकार ने इसके बाद युद्ध नहीं किया और सेना को वापिस कैंट में बुला लिया गया।
इसके बाद उड़ी और पठानकोट पर हुए हमलों में नरेन्द्र मोदी की सरकार ने युद्ध नहीं लडक़र सर्जिकल और एयर स्ट्राइक की थी। भारतीय पायलट अभिनंदन का प्लेन क्रैश होकर पाकिस्तानी इलाके में गिर गया था। अभिनंदन को पाकिस्तान में गिरफ्तार कर लिया गया था किंतु विश्व के बड़े नेताओं के प्रभाव में अभिनंदन को ससम्मान भारत को वापिस कर दिया था।
अब पहलगाम में आतंकवादी घटना के बाद भारतीयों का जोश है कि पाकिस्तान को इस बार कड़ा संदेश दिया है।
पाकिस्तान की ताकत देखी जाये तो उसके साथ चीन है। वहीं शाहीन, गौरी आदि मिसाइल भी उसके पास हैं। वहीं भारत के पास पृथ्वी, त्रिशूल, आकाश आदि मिसाइल हैं।
भारत के पास ज्यादातर हथियार रशिया मेड है। वहीं पाकिस्तान के पास चाइना और अमेरिका के हथियार हैं। एफ-16 अमेरिका का उन्नत हैलीकॉप्टर भी उसके पास है। भारत ने हाल में राफेल विमान प्राप्त किये हैं। इसके अतिरिक्त सुखाई सहित कई उन्नत फाइटर जेट हैं।
वर्ष 1971 की जंग में रूस ने भारत का खुलकर साथ दिया था। इस बार रूस स्वयं यूक्रेन की जंग में फंसा हुआ है। इजरायल भारत का खुलकर साथ दे सकता है क्योंकि 1999 के कारगिल युद्ध में भी ऐसा किया था। अब अमेरिका जो विश्व की सबसे बड़ी ताकत है, उसके बारे में सोचना चाहिये।
चाइना के सामने भारत को एक बड़े देश का सहयोग चाहिये हो सकता है और यह सहयोग अमेरिका ही दे सकता है। अब यह देखना है कि भारत की विदेशी कूटनीति किस तरह से सशक्त देशों को अपने पाले में लाती है।
भारत के सामने अगर युद्ध की स्थिति आती है तो वह आर-पार की लड़ाई के मूड में रहेगा। क्योंकि दो बार स्ट्राइक के बाद भी पाकिस्तान ने अपने मंसूबों को नहीं बदला है। हामिद मीर जो पाकिस्तान के सीनियर जर्नलिस्ट हैं, ने कहा है कि हम शिमला समझोता मानने से इन्कार कर सकते हैं।
माहौल को बदला हुआ देखकर गुरुवार को शेयर बाजार में भी कमजोरी देखी गयी है। एशिया के बाजार ठंडे रहे।
युक्रेन-रूस युद्ध को तीन साल से ज्यादा का वक्त हो गया है। वह अभी भी चल रहा है। इस तरह से भारत-पाकिस्तान की जंग होती है तो लम्बी चल सकती है। अरब के कुछ देश भी पाकिस्तान को मदद कर सकते हैं। पाकिस्तान के सेना अध्यक्ष का कहना है कि पाकिस्तान का बुनियाद मोहम्मद साहब के कलमा पढक़र डाली गयी थी, जो विश्व का एकमात्र देश है। इस तरह से धर्म का एक कार्ड खेला है।
भारत अपने सभी कार्ड को देख रहा है। अमेरिका की नीति क्या रहती है, यह भी युद्ध को दिशा देगा। इस तरह से अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के पास सारे पत्ते हैं।
पहले उन्होंने ही पाकिस्तान को आदेश दिया था कि वह भारतीय पायलट अभिनंदन को इंडियन सेना को सौंप दे। उनको तुरंत ही रिलीज कर दिया गया था।
ट्रम्प अपने पत्ते खोलते हैं तो उसके बाद ही तनाव को कम या ज्यादा होना आंका जा सकता है।