श्रीगंगानगर। भारत का पिछले महीने का जीएसटी संग्रह सवा दो लाख करोड़ से ज्यादा का रहा। अप्रत्यक्ष कर के रूप में एक माह में संग्रह हुआ टैक्स सबसे ज्यादा है। अप्रत्यक्ष कर प्रत्यक्ष कर से कहीं ज्यादा वसूला जा रहा है और इसके बाद भी सरकार को लोन पर लोन लेना पड़ रहा है।
दुनिया में इस समय कच्चे तेल की कीमतें कम हैं। इसके बाद भी मौजूदा सरकार अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार से कम से कम तीन गुणा महंगा तेल बेच रही है। मनमोहन सिंह की सरकार से दो गुणा पैट्रो बेचा जा रहा है।
बजट पेश करने के दौरान सरकार बताती है कि हम यहां निवेश करने वाले हैं। सरकार को इतना रेवेन्यू विभिन्न स्रोत से प्राप्त होनेवाला है। इस तरह के बयान और इसके बाद प्रधानमंत्री का संबोधन के साथ ही राष्ट्रपति के बयान का प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित हो जाता है। बजट मंजूर हो जाता है। जिसको जितना ज्ञान होता है, उतना वह धन प्राप्त करने में कामयाब हो जाता है।
वहीं केन्द्र सरकार के बाद राज्य सरकारें भी विभिन्न प्रकार का टैक्स वसूलती हैं।
इसके बाद भी सरकार को अपनी योजनाओं को पूर्ण करने के लिए लोन लेना पड़ता है।
राज्य सरकार को अपने इलाके में बड़ा विकास कार्य करवाना हो तो वह फाइल केन्द्र सरकार के पास भेजकर उसके बदले में 60 प्रतिशत धन की मांग करती है। 40 प्रतिशत सरकार को देने होते हैं, वह उसके बदले में किसी संस्थान यथा एशिया विकास बैंक, भारत सरकार के वित्तीय उपक्रम या किसी अन्य देश की वित्तीय एजेंसी से ऋण लेती है। वहीं भारत सरकार अपने 60 प्रतिशत का ऋण लेती है और वह भी आईएमएफ या किसी अन्य सरकारी-गैर सरकारी एजेंसी से।
इस तरह से जो टैक्स दिया गया था, उसका तो पता ही नहीं चलता कि वह किस मद में खर्च कर दिया गया। अनेक बार जिस योजना के लिए ऋण लिया जाता है, वह अन्य मद में भी खर्च कर दिया जाता है जिससे विकास कार्य रूक जाते हैं।
वहीं नेता लोग गलियों-मोहल्लों में जनसभा करते हैं तो कहते हैं कि विकास के लिए कोई कमी नहीं आने दी जायेगी। जितना धन चाहिये, मिलेगा। इस तरह से जनता से किये गये वादे ऋण पर लिये गये कार्यों पर पूर्ण हो पाते हैं।
अब अगर 2004 से लेकर 2024 तक का भारत सरकार पर ऋण देखें तो आश्चर्य होगा। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गयीउस समय भारत सरकार पर ऋण था 17 लाख करोड़ रुपये।
मनमोहनसिंह की सरकार 10 साल तक रही और उन्होंने ऋण को पहुंचा दिया 55 लाख करोड़ रुपये। 10 सालों में विभिन्न एजेंसी से 38 लाख करोड़ रुपये लिया गया। अब यहां से भारत के लोकप्रिय पीएम नरेन्द्र मोदी की बारी आती है। उन्होंने सडक़ों का जाल बिछाने का दावा किया। नये बंदरगाह बनाने नये एयरपोर्ट और एम्स बनाने के लिए लोन की सीमा को 205 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचा दिये।
10 सालों के भीतर 150 लाख करोड़ रुपये का ऋण उठा लिया गया और उसको विकास का नाम दिया गया।
यह भी तब है जब गैस सिलेंडर 400 से एक हजार रुपये को पार कर गया। पेट्रोल 50 से 100 या इससे भी ज्यादा दामों पर बिका। जीएसटी को 14 प्रतिशत से उठाकर 32 प्रतिशत तक कर दी गयी। इस तरह से टैक्स का आतंकवाद लोगों को भयभीत कर रहा है। बिजली के दाम 10 रुपये प्रति यूनिट पहुंच रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने बिजली को मौलिक आधार बताया है इसके बावजूद सरकार लोगों को बिजली कनेक्शन काटने में देर नहीं करती जबकि उसकी सरकारी कंपनियां खूब घाटे में चल रही हैं। लोगों को घर से बाहर निकालकर उनको खानाबदेाश करने से परहेज नहीं करती।