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कर्जा, टैक्स फिर भी आम आदमी को रेलगाड़ी में सुरक्षित सीट नहीं

श्रीगंगानगर। दस सालों के भीतर 150 लाख करोड़ का कर्ज, गब्बर सिंह टैक्स, पैट्रो कीमतों को सर्वाधिक उच्चस्तर पर पहुंचाने के बाद भी भारत के आधारभूत ढांचें में क्या बड़ा बदलाव आया है? रेलगाडिय़ां आज भी अपने निर्धारित समय से देरी से चल रही हैं। धुंध का सामना करने के लिए रेल मंत्रालय के पास तकनीक नहीं है।
भारत गणराज्य की सरकारें समय-समय पर रेलगाडिय़ों का नामकरण करती रही हैं, लेकिन नामकरण के बाद भी प्रधानमंत्री किसी एक रेलगाड़ी को हरी झण्डी दिखाते हुए उपस्थित नहीं होते थे। रेलमंत्री, सांसद या रेलवे बोर्ड का अध्यक्ष ही यह कार्य कर देता था।
लालू प्रसाद यादव के समय गरीब का रथ और राजधानी एक्सप्रेस आदि नाम से कई रेलगाडिय़ां चला करती थीं। अब उनका बदला जा रहा है और पीएम स्वयं झण्डी दिखाने के लिए पहुंच जाते हैं।
सरकार ने 150 लाख करोड़ रुपये भारतीय और विदेशी वित्त एजेंसियों से लोन लिया है। इतनी बड़ी धनराशि प्राप्त करने के बाद आज भी जनरल डिब्बे में यात्रियों के पास सुरक्षित सीट होगी, कहा नहीं जा सकता। यात्रियों को खड़े होकर कई सौ किमी का सफर करना पड़ता है।
यहां तक की रेलगाडिय़ों के डिब्बों में सीटों को भी इस लायक नहीं बनाया जा सका है कि वहां पर बैठकर गरीब अपने मुकाम तक पहुंच जाये। ‘गरीब का बेटा हूं, गरीबी को जानता हूं’, इन नारों के साथ ही नरेन्द्र मोदी की सरकार सत्ता में आयी थी।
चप्पल वाले को हवाई यात्रा करवाने का सपना दिखाया गया था और हालात क्या हैं, उससे लम्बी दूरी की रेलगाड़ी में सुरक्षित सीट ही नहीं उपलब्ध करवायी गयी। वक्त लम्बा गुजर गया। अगर करना होता तो 10 सालों के भीतर नक्शा ही बदल दिया जाता।
भारत सरकार कहती है कि वह आरामदायक सडक़ें बना रहीहै तो बदले में भारी-भरकम टोल भी वसूल रही है।
सामाजिक सुरक्षा के नाम पर सिर्फ नरेगा
सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध करवाना भारत सरकार ही नहीं अपितु दुनिया की हर सरकार के लिए महत्वपूर्ण कार्य होता है। भारत की सामाजिक सुरक्षा को देखें तो क्या सामने आता है। सरकारी स्कूल हैं, हॉस्पीटल हैं। हालात क्या हैं जहां स्कूल हैं वहां पर भी संसाधनों की कमी को देखा जा सकता है। राजस्थान के स्कूलों में जाइये और देखिये कि बच्चों को स्वच्छ जल भी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। वे पेट से संबंधित रोगों के शिकार हो रहे हैं।
समाजिक सुरक्षा के नाम पर एक यूनिट को पांच किलो गेहूं देकर माना जा सकता है कि भारत कुपोषण से मुक्त हो जायेगा। लाखों नहीं करोड़ों लोग भारत में कुपोषित हैं।
गौतम अडाणी को एयरपोर्ट, बंदरगाह आदि देने वाले नरेन्द्र मोदी ने अपने मित्र को यह नहीं कहा कि आप हॉस्पीटल भी लीजिये। सरकारी स्कूल भी लीजिये और वहां पर बदलाव लाइये।
जनता से जीएसटी को 14 प्रतिशत से 18 प्रतिशत तक ले जाया गया और फिर इसको बढ़ाया गया। 28 प्रतिशत ले जाया गया। इसके बाद भी 150 लाख करोड़ का ऋण लिया गया। पैट्रो क्षेत्र में अगर तेजी है तो इसका कारण यह है कि मुकेश अम्बानी और गौतम अडाणी सहित कई मित्र इस क्षेत्र में कार्यरत है।
अब अडाणी ने अन्य राजनीतिक दलों में भी पैठ बना ली है और इसी कारण केरल का बंदरगाह उसको सौंप दिया गया और पीएम दिल्ली से केरल तक सफर कर वहां उद्घाटन करने के लिए पहुंचे। यह बदलते भारत की तस्वीर है।

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