न्यूयार्क। पश्चिमी यूरोप के देशों ने अपनी कम आबादी और व्यापार को बढ़ानेंं के लिए एक संघ बनाया जिसका नाम यूरोपीय यूनियन रखा गया। अब यह देश एक विशाल बाजार बन गये हैं और करीबन 45 करोड़ आबादी हो गयी है।
यूरोपीय यूनियन में एक से दूसरे देश जाना कोई रुकावट वाली नीति नहीं है। इन देशों ने एक मुद्रा भी अपनायी जिसको यूरो कहा जाता है और यूरोपीय देश एक मजबूत करंसी के माध्यम से विकसित राष्ट्र बन गये और अपने देश के नागरिकों की आय को भी ऊंचाई पर पहुंचाने का प्रयास किया।
दूसरी ओर हम देखते हैं तो भारत की आबादी 140 करोड़ या इससे ज्यादा की है। इसके बावजूद भारतीय मुद्रा का हृास हो रहा है। रुपया रोजाना ऊपर-नीचे होता है और वर्तमान में एक डॉलर के मुकाबले 85 रुपये की दर है।
यूरोप से पांच गुणा अधिक आबादी है। राजस्थान, उत्तरप्रदेश और बिहार तीन राज्य की आबादी को मिला दिया जाये तो यह आबादी यूरोपीय यूनियन की आबादी को पीछे छोड़ देती है।
दुनिया में सर्वाधिक आबादी वाले देश भारत को एक बड़ा बाजार माना जाता है फिर भी उस हिसाब से तरक्की नहीं कर पा रहे हैं।
वर्ष 2014 के चुनावों में एक झोली वाला नेता जी आये थे और स्वयं का नाम नरेन्द्र मोदी बताया। उत्तर प्रदेश में हर-हर मोदी, घर-घर मोदी का नाम दिया गया।
नेताजी ने कहा था कि वह गरीबी को झेल चुके हैं। उनका अनुभव है और गरीब ही गरीब का दर्द समझ सकता है। इस तरह से उन्होंने दुनिया को अपने साथ किया था।
आज 11 सालों बाद देखते हैं तो वे रेलगाडिय़ों को गरीबों के लायक नहीं बना सके हैं। अपने सफेद बालों पर डाई लगाकर टीवी पर दिखने वाले पत्रकार समाचार कम देते हैं और नेताजी की तारीफ ज्यादा करते हैं। नोटबंदी के दौरान 2000 के नोट पर चिप लगी होने के दावे भी किये गये।
अब उन नेता जी के कार्यों की समीक्षा करते हैं तो 150 लाख करोड़ डॉलर का ऋण लेकर उन्होंने क्या किया है, यह किसी के समझ नहीं आ रहा है। रेलगाडिय़ों में वही पत्थरीली सीटें हैं। यात्री को लम्बी यात्रा के दौरान आराम करने के लिए सीट तक नहीं मिल पाती।
वह गरीबी का दर्द कहां गया, किसी को दिखाई नहीं दे रहा। रेलगाडिय़ों को भी कार्पोरेट घरानों की तरह चलाया जा रहा है। अधिक किराया दो और अधिक सुविधा प्राप्त करो।
अगर सरकार सभी डिब्बों के भीतर एसी की सुविधा नहीं दे सकती है तो कम से कम स्लीपर तो दे ताकि यात्री लम्बी यात्रा में सहज अनुभव कर सकें।
यूरोपीय यूनियन अपने नागरिकों को ऑटोमैटिक रेलगाड़ी की सुविधा देती है। द्वार को बंद करने या खोलने का झंझट नहीं है। यही अंतर देश के लोगों के भीतर सादर आदर भाव देने वाला बनता है।