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चीन से हार को 1962 को स्वीकार कर लिया गया था!

श्रीगंगानगर। भारत-पाकिस्तान के बीच तीन-चार दिन जिस तरह से हवाई हमले होते रहे और फिर युद्धविराम का निर्णय ले लिया गया। सीजफायर का एलान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने किया। अचानक ही सीजफायर का निर्णय लेने से न तो सेना खुश है और न ही भारत की जनता।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था, पहलगाम घटना के दोषियों को मिट्टी में मिला दिया जायेगा। सरकार ने सेना को एक तरफ खुली छूट देने का निर्णय लिया तो दूसरी ओर अचानक ही सेना को अपनी मूवमेंट को समाप्त करने का ऑर्डर दे दिया गया।
अब सेना को खुली छूट देने का मामला भी था और सीजफायर का भी। सोमवार को फिर से बैठक हुई और कहा गया कि अब ऑपरेशन ङ्क्षसंदूर खत्म नहीं हुआ।
तीन चार दिन तक जो एक्सरसाइज हुई, उससे भारत पहलगाम के आतंकियों को नहीं मार सका। गिरफ्तार भी नहीं कर पाया या इसको यह कहा जाये कि वह तलाश ही नहीं कर पाया।
अब सरकार के नुमाइंदे पीछे हो गये हैं और सेना के माध्यम से प्रेस कॉन्फ्रेंस करवायी जा रही है। ताकि यह निर्णय प्रदर्शित किया जा सके कि जो भी निर्णय हुआ है वह सेना ने लिया है।
युद्ध से दोनों तरफ नुकसान हुआ है। भले ही यह देश जनता को नहीं बता रहे हों, लेकिन यह सच है।
इससे पहले 1962 का चीन युद्ध देखिये, उस समय प्राइवेट चैनल नहीं थे और अखबार भी कुछ घरों तक ही सीमित होती थी। उस समय भारत को हार देखनी पड़ी थी किंतु ऑल इंडिया रेडियो ने जनता से छुपाया नहीं था और स्वीकार किया था कि चीन से पराजय हाथ लगी है।
अब प्राइवेट सूचना केन्द्र भी हैं, फिर भी सही समाचार प्राप्त नहीं होते रहे तो यह समझा जा सकता कि सरकार बताना नहीं छुपाना चाहती है। इस समाचार का अर्थ यह नहीं है कि भारत हार गया। हार-जीत का तो फैसला हुआ ही नहीं था क्योंकि पैदल सेना तो मैदान में अभी आयी ही नहीं थी। वह सिर्फ कश्मीर तक सीमित थी।

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