न्यूयार्क। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प मध्य पूर्व एशिया के दौरे पर थे किंतु वे इजरायल नहीं गये। उन्होंने सउदी अरब, कतर, यूएई तथा सीरिया के राष्ट्राध्यक्षों से मिलने का ही कार्यक्रम बनाया। यह संकेत किसको दिया गया है कि इजरायल अब फेवरिट मुल्क नहीं है?
डोनाल्ड ट्रम्प ने पहले कार्यकाल में इजरायल को खूब छूट दी थी और यहां तक कि सीरिया की पहाडिय़ों पर बरसों पूर्व किये गये कब्जों को भी मान्यता प्रदान कर दी थी। 2.0 में ट्रम्प और इजरायल प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतनयाहू से भी मुलाकात दो बार की किंतु जब वे मध्य पूर्व एशिया के दौरे पर गये तो उन्होंने यरूशलम की यात्रा नहीं की।
अरब के देशों से उनको कई ट्रिलियन के निवेश समझौते मिले हैं। इस तरह से उन्होंने विश्व को संकेत दिया है कि ‘अमेरिका इज बैक’। अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है और मध्य पूर्व के देशों का निवेश काफी कम था किंतु अगले एक दशक में अमेरिका में अरब का निवेश और भी हो सकता है।
इजरायल की यात्रा पर नहीं जाना, ट्रम्प ने सीधा संकेत भारत गणराज्य की सरकार को दिया है। अगर भारत को देखा जाये तो दक्षिण कोरिया और जापान की कार कंपनियां ही कारोबार करती हैं।
बड़े नाम वाली कार निर्माता देश भारत में निवेश नहीं कर रहे। इन कारों को आयात ही करना पड़ता है। भारत सरकार ने नया फार्मूला निकाला। मारुति सुजुकी और हुंडई के साथ वार्ता के बाद इन दोनों कार निर्माताओं को एक-एक नये नाम से कारोबार करने के लिए तैयार कर लिया।
इस तरह से मेक इन इंडिया का सपना भी पूरा हो गया।
डोनाल्ड ट्रम्प इस समय जिस देश के साथ सबसे ज्यादा गुस्से में हैं, वह भारत गणराज्य की सरकार है। सात सालों से भी अधिक समय से कवाड को लेकर बैठकें चल रही हैं, लेकिन कोई हल नहीं निकल रहा। इस कारण ट्रम्प ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के यूएसए दौरे के कारण दोहराया था कि मोदी, एक बड़े नैगोशिएटर हैं।
इजरायल के प्रधानमंत्री के साथ नरेन्द्र मोदी की मित्रता है। इजरायल की आबादी 1 करोड़ के आसपास है। इसके बाद भी वह अगर अरब देशों के साथ कभी खतरे में नहीं दिखाई दिया तो इसका कारण भी था कि अमेरिका इजरायल को अत्याधुनिक हथियार सप्लाई करता था और उसका मनोबल भी बढ़ाता रहा था।
ट्रम्प ने अब साफ शब्दों में टिम कुक को कह दिया है कि भारत अपना ख्याल रख सकता है। 500 बिलियन डॉलर भारत में नहीं अमेरिका में निवेश करो। इस तरह से उन्होंने अमेरिकी कारोबारियों, निवेशकों को संकेत दिया है कि भारत में निवेश करने से वे खुश नहीं होंगे।
भारत से नाराजगी का कारण?
अमेरिका बार-बार दोहराता रहा है कि भारत अपने संवैधानिक संस्थाओं को फिर से जीवित करे। उनकी मान-मर्यादा बरकरार रखे। मानवाधिकार की स्थिति और अभीव्यक्ति की आजादी को भी मजबूत करे।
अमेरिका की इस मांग के बावजूद पहले गृह मंत्रालय से रिटायर हुए अजय कुमार भल्ला को मणिपुर और रक्षा मंत्रालय से रिटायर हुए सचिव/आईएएस अजय कुमार को यूपीएससी का चेयरमैन बना दिया। इस तरह से वे ब्यूरोक्रेसी को हर हालत में खुश देखना चाहते हैं।
ब्यूरोक्रेसी को सिस्टम कहा जाता है और भारत में दोनों पूरक हो गये हैं।
वहीं यह भी देखिये कि सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रहे संजीव खन्ना ने सरकार के साथ चल रहे मामलों से खुद को अलग कर लिया।
इस तरह से संवैधानिक संस्थाओं को मखौल बनाया हुआ है, ट्रम्प चाहते हैं कि वह समाप्त हो। इसी कारण वे मोदी सरकार से काफी नाराज हैं। वे चाहते हैं कि फिर से नरेन्द्र मोदी के साथ तीसरे देश में वार्ता की जाये। इस पर भी मोदी सरकार के साथ बैठक नहीं हो पा रही है।
वहीं इजरायल के पीएम बेंजामिन नेतनयाहू खुलकर भारत का साथ दे रहे हैं। इस कारण ट्रम्प ने अपने विदेश नीति को ही बदल दिया। अब वे अरब के देशों से निवेश के बहाने अपने रिश्ते मजबूत कर रहे हैं।
अगर अमेरिका भारत के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को कमजोर करता है तो इससे भारत का अपना ही पैसा कई देशों से घूमता हुआ वापिस आयेगा और उसको विदेश निवेश कह दिया जायेगा। इस पर बोलने वाला या खुलासा करने वाला कोई नहीं होगा।
झोली को मोदी ने छुपा लिया?
नरेन्द्र मोदी ने 2014 के चुनावों के समय साफ शब्दों में कहा था कि जब उत्तराधिकारी आयेगा तो वे झोली उठाकर चल देंगे। वे तो एक फकीर हैं। अब मोदी की न तो झोली दिखाई देती है और न ही वे अपनी कुर्सी को छोडऩा चाहते हैं।
कुछ एनजीओ ने उनको मशहूर किया गया कि वे बिना अवकाश लिये काम करते हैं और मात्र 3 घंटे ही विश्राम करते हैं। इस तरह से उन्होंने 2019 के चुनावों में स्वयं को चोकीदार भी बता दिया।