श्रीगंगानगर। वायदा कारोबार ऐसा है, जहां पर गैर किसान भी जिंस की खरीद-फरोख्त कर सकते हैं और उसके मूल्य को प्रभावित किया जा सकता है। करीबन एक दशक पहले ग्वारगम का मामला सामने आया था।
अगर सरकार से सवाल किया जाये कि वह गेहूं और चावल जैसे अन्न को वायदा कारोबार में शामिल क्यों नहीं करती तो सरकार के पास कोई उत्तर नहीं होगा। कारण ऐसा है कि यह आम व्यक्ति की आवश्यक खाद्यान्न है। इसी तरह से सरकार को यह भी ध्यान देना चाहिये कि सोना (गोल्ड) भी इसी प्रकार की आवश्यक वस्तु है, जिसको सटोरियों के हवाले नहीं किया जा सकता।
गेहूं और चावल जैसे खाद्यान्न अगर शामिल हो जाते हैं तो उसके भावों को नियंत्रित नहीं किया जा सकेगा और मुनाफाखोर कालाबाजारी कर सकते हैं। इसी तरह का हाल गोल्ड का किया गया है। एक दशक पहले ग्वार फसल को 2 हजार रुपये से 30 हजार रुपये तक सट्टेबाजी से पहुंचा दिया गया था।
करीबन एक दशक पहले सोने के भाव 30 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम थे जो मई 2025 में लगभग 1 लाख रुपये हो चुके हैं। ऐसा नहीं है कि सोने के खदान समाप्त हो गयी है। सोने का और खनन नहीं किया जा सकेगा बल्कि इसको सट्टेबाजी के लिए खुली छूट प्रदान कर दी गयी है।
सोने के भाव करीबन दो दशक पहले 6 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम थे। इसको बाजार में प्रभावित किया गया और भाव को 6 से 10 हजार रुपये तक ले जाया गया और फिर इसको 10 से 30 हजार रुपये तक की स्थिति में पहुंचाया गया। सरकार ने इसमें दखलांदाजी करने का प्रयास ही नहीं किया।
विदेशों में भले ही सोना को सिर्फ निवेश की वस्तु समझा जाता हो लेकिन भारत के अंदर यह आम व्यक्ति के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण धातू है। बेटी-बेटा के विवाह समारोह के लिए इसकी खरीद की जाती है और यह मिडिल क्लास के सम्मान का एक कारण भी है।
इसी तरह से मिडिल क्लास के लिए उसका अपना घर भी सम्मान का प्रभावशाली कारक है। सरफेसी एक्ट उसके सपनों को कभी भी तोड़ सकता है। असल में भारतीय कारोबार में जब से क्रेडिट रेटिंग एजेंसीज आयी हैं, उस समय से मिडिल क्लास को बैंकिंग सिस्टम से ही दूर कर दिया गया है।
सिस्टम में बैंकिंग कैश ट्रांसफर तो काफी कम हो गया है। बैंक अब कार्यालय अब सिर्फ लोन के लिए कार्य करते हैं और उसमें भी गैर आवश्यक शर्तों को शामिल कर लिया जाता है और इस तरह से मिडिल क्लास को तो एक झटके से बाहर कर देते हैं। दूसरी तरफ मकान को गिरवी रखकर लोन लिया गया है तो सरफेसी एक्ट ऐसा हथियार है जिससे मकान मालिक से उसके अधिकार को छीन लिया जा सकता है। उसको बेखदल किया जा सकता है। मिडिल क्लास फेमिली के पास भले ही एक ही मकान हो, लेकिन उसकी पीड़ा को नजरांदाज किया जा सकता है।