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न्यूनतम मजदूरी में बड़ा मतभेद क्यों है?

श्रीगंगानगर। भारत गणराज्य की जब बात होती है तो 140 करोड़ की आबादी होने के कारण अव्यवस्थाओं का ठीकरा फोड़ दिया जाता है। गणराज्य की सरकार अपनी जिम्मेदारी को नहीं समझना चाहती। एक बेहतर शासन प्रणाली विकसित की जाये, इस पर कभी चर्चा तक नहीं होती। अगर बैठक भी होती है तो उनका कोई क्रियान्वयन नहीं हो पाता, इसका प्रमाण दुनिया के सामने है।
भारत गणराज्य की सरकार मानती है कि अकुशल श्रमिक की प्रतिदिन मजदूरी 700, कुशल की करीबन 900 रुपये होनी चाहिये। इसी के अनुसार वह दुनिया के आकड़े पेश करती है कि वह चौथी अर्थव्यवस्था बन चुका है। 4 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था होने का दावा किया जाता है।
वहीं जब हम महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के रिकॉर्ड को देखते हैं तो उसमें प्रतिदिन मजदूर को 370 रुपये की मजदूरी तय की हुई है। एक तरफ सरकार 700 रुपये अकुशल मजदूरी का निर्धारण करती है तो अपनी ही योजना में उन नियमों का पालन नहीं किया जाता और मजदूरों को 370 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान किया जाता है। इस योजना के मद में 100 दिन का रोजगार आवश्यक है।

सरकार ने माना था 6 करोड़ से अधिक लोगों के पास मूलभूत संसाधन नहीं
वर्ष 2011 की जनगणना के उपरांत सरकार ने अपने स्तर पर स्वीकार किया था कि 6 करोड़ या इससे अधिक लोगों के पास मूलभूत संसाधनों का अभाव है। इनमें नित्य रोज की आवश्यकताएं भी शामिल है। करोड़ों लोग झुग्गियों में निवास कर रहे हैं और उनके पास खुले में शौचालय जाना आम बात है। आदमी हो या औरत दोनों के पास यह समस्या है।
सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार ही भारत में 41 प्रतिशत लोगों के पास स्वयं का आवास नहीं है। यह आकड़ा बहुत बड़ा है। अगर देश में 80 करोड़ परिवार भी माने जायें तो उनमें 41 प्रतिशत का अर्थ 30 करोड़ से ज्यादा हो गया। वहीं भारत सरकार की प्रधानमंत्री आवास योजना में लगभग 95 लाख लोगों को ही मकान उपलब्ध करवाये जा सके हैं।

सरकार की नीयत में खोट या लापरवाही?
सवाल बड़ा है कि इतने खतरनाक सरकारी आकड़े जब उपलब्ध हैं तो इसके बावजूद हम व्यवस्थाओं में सुधार नहीं कर पा रहे हैं। भारत गणराज्य की सरकार के पास आज भी वही प्रशासनिक प्रणाली है जो 1947 से पहले थी। उस समय मुख्य अधिकार अंग्रेजी हुकूमत का हुआ करता था जिसको कलक्टर भी कहा जाता है। वही व्यवस्था आज भी चलन में हैं।
अगर हम अमेरिका को देखें तो उनकी आबादी मात्र 30 करोड़ है जो भारत से 100 करोड़ कम है, लेकिन वहां पर हम जिलों की संख्या को देखते हैं तो वह हैरान करने वाला आकड़ा है।
भारत में जिले लगभग 800 हैं। यह आकड़ा दिसंबर 2023 तक का है। वहीं अमेरिका में जिलों की संख्या 3 हजार 142 है। भारत से करीबन चार गुणा अधिक जिले हैं। छोटी-छोटी आबादी क्षेत्र को विभाजित करते हुए वहां पर जिलास्तरीय अधिकारी नियुक्त किये हैं, जिससे उनके पास समस्याओं को सुनने और उनके समाधान का भी अवसर होता है। चीन जो भारत का पड़ोसी है, ने भी 2 हजार 800 जिलों में देश की प्रशासनिक व्यवस्था का विभाजन किया हुआ है।

जिलों का पुनर्गठन कभी हुआ ही नहीं
ब्रिटिश हुकूमत के भारत छोडऩे के उपरांत भारत में जो व्यवस्था चल रही थी, वह आज भी स्वीकार की जा रही है। एक बड़े जिले से राजनीतिक व्यवस्थाओं के तहत बंटवारा करते हुए जिले तो बनाये गये हैं, लेकिन ग्राम पंचायतों का पुनर्गठन करते हुए राजस्व जिले सृजित न हीं किये गये। भारत की आज भी आधी से ज्यादा आबादी गांवों में हैं और इस व्यवस्था के कारण उनको अपने इलाके की पेयजल, बिजली आदि व्यवस्थाओं के लिए परेशानी होती है।

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