श्रीगंगानगर। भारत और अमेरिका के बीच चल रहे तनाव से अब देश-दुनिया में कोई अनजान नहीं रहा है। दोनों देशों के बीच जो मुख्य मतभेद हैं, वह है मानवाधिकार। मानवाधिकार के संबंध में रिपोर्ट को तैयार किया जाये तो सामने खौफनाक आकड़े आते हैं। जेलों को अधिकारियों ने व्यापार का केन्द्र बनाया हुआ है और कैदियों ने मोबाइल के जरिये ही ड्रग कारोबार, कॉन्टेक्ट किलिंग आदि का धंधा चलाया हुआ है।
समाचार को आगे बढ़ाये जाने से पहले यह देखा जाना भी जरूरी है कि श्रीगंगानगर में एक पुलिस अधिकारी के पिता को ही इतना टार्चर किया गया कि उसकी मौत हो गयी। जिस जेलर पर आरोप लगाया गया, उसके कार्यकाल में श्रीगंगानगर में 10 मौत हुईं थीं। सभी को प्राकृतिक मौत का रूप दिया गया किंतु पुलिस अधिकारी ने अपने स्तर पर जांच की और विभिन्न रिपोर्ट को आरटीआई से प्राप्त कर एक दस्तावेज तैयार किये तो स्थानीय पुलिस ने भी माना कि वह आत्महत्या या प्राकृतिक मौत नहीं बल्कि यातना से की गयी हत्या है।
सुधार गृह नहीं यातना केन्द्र हैं जेल
जेल का निर्माण इसलिए किया जाता है कि अपराधियों के व्यवहार में सुधार किया जाये और जब वह सजा भुगत कर बाहर निकले तो एक अच्छा नागरिक बनकर फिर से मुख्य धारा में शामिल हो सके। लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है।
भारत सरकार ने जेलों को कई भागों में बांटा हुआ है, एक केन्द्रीय जेल, दूसरा जिला कारागृह और तीसरा सब जेल आदि बनाये गये हैं और इसमें सजा के अनुसार कैदियों को शामिल किया जाता है किंतु यह जेल अपराध की यूनिवर्सिटी बने हुए हैं। हाल ही में सामने आया था कि एक कैदी का इंटरव्यू जेल से लिया गया। पत्रकार स्टूडियो में था और कैदी जेल में था। इसका प्रसारण किया गया।
जेलों में सुधार के लिए कभी विचार ही नहीं हुआ
जेलों में सुधार के लिए कभी प्रयास ही नहीं किया गया। 140 करोड़ की आबादी वाले भारत गणराज्य में 137 केन्द्रीय जेल में हैं और इनमें क्षमता से अधिक कैदियों को भरा गया है। जेल में किस तरह का व्यवहार हो रहा है, इसकी मॉनिटरिंग की व्यवस्था जेल अधिकारियों पर ही छोड़ दी गयी है। अमेरिका की आबादी 30 करोड़ के आसपास है और वहां पर संघीय या फेडरल जेल के रूप में 122 केन्द्र बनाये गये हैं ताकि जेलों में क्षमता से अधिक कैदी नहीं हों और व्यवस्थाओं को बेहतर बनाया जा सके। इसी से अनुमान लगाया जा सकता कि भारत का गृह मंत्रालय किस तरह से आंखें बंद करके सोया रहता है।
सैंट्रल जेल में राज्य सरकार के अधिकारी बॉस
सैंट्रल जेल में उन कैदियों को रखा जाता है जो आदतन अपराधी हों या लम्बी अवधि की सजा भुगत रहे हैं। अब यहां पर भी गुटबाजी हो जाती है और जेल का बॉस बनने के लिए कैदियों में झगड़ा, मर्डर, मारपीट होना आम बात है। जेल के भीतर वह सब सामान आसानी से मिलता है जो बाहर मुश्किल से खोजना पड़ता है। इनमें नशा भी शामिल है।
सरकार ने नाम तो केन्द्रीय कारागृह का नाम दे दिया गया किंतु इसमें राज्य जेल सेवा के अधिकारियों को बॉस बनाया जाता है। आईपीएस अधिकारियों को प्रदेशस्तर पर मॉनिटरिंग की व्यवस्था दी जाती है जो व्यापक रूप से सफल नहीं रही है।
अनेक जेलों को शहर के बाहरी क्षेत्र में ज्यादा भूक्षेत्र में स्थापित करने के लिए योजनाएं भी बनायी गयी, लेकिन यह योजनाएं सफल ही नहीं हो पायीं और फाइलें दबकर रह गयीं।
एक साल में दो 1800 से ज्यादा मौत होती हैं
भारत गणराज्य की जेलों का ट्रैक रिकॉर्ड देखा जाये तो सामने आता है कि प्रत्येक साल औसतन 1800 से ज्यादा मौत हो जाती हैं और इनमें अधिकांश को प्राकृतिक रूप दे दिया जाता है। जिस तरह से श्रीगंगानगर में पुलिस अधिकारी के पिता की मौत का मामला सामने आया और जांच व तथ्यों से पता चला कि टार्चर देकर हत्या की वारदात को अंजाम दिया जाता है।
सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार वर्ष 2010 से लेकर 2022 तक 13 सालों में 23 हजार 477 कैदियों की मौत को रिकॉर्ड पर लिया गया है। इनमें 20 हजार 779 मौतों को प्राकृतिक कारण माना गया अर्थात हार्टअटैक या अन्य बीमारी से मौत होना। वहीं 2 हजार 698 मौत ऐसी हुई हैं जो अप्राकृतिक श्रेणी में आती है।
इनमें से अधिकांश के बारे में यह लिखा जाता है कि इन लोगों ने आत्महत्या कर ली। 27 सौ मौत का जेल में होना, जिसको न्यायिक अभिरक्षा कहा जाता है, जिसकी जांच न्यायिक अधिकारी करते हैं, अनेक सवाल खड़े करती है। विभिन्न वृत्तचित्रों से दिखाया जाता है कि भारत की जेलों में हत्या आम बात है और यह अधिकारियों और गंभीर प्रकृति के अपराधियों की आपसी सांठगांठ से ऐसा संभव होता है।
जेलों में क्षमता से कहीं अधिक कैदी हैं जमा
जेलों में कैदियों को शिफ्ट किया जाता है तो उसका नाम दिया जाता है जमा। अब जमा अपराधियों को श्रेणीवार रखा जाना चाहिये, लेकिन ऐसा नहीं हो पाता। आदतन अपराधी और नये अपराधी को एक ही बैरिक में डाल दिया जाता है और उन पर दबाव बनाकर शौचालय साफ करवाने, अन्य गंदगी को हटाना तथा बहुत से अन्य कार्य या अत्याचार होते हैं जो न्यायिक अभिरक्षा में नहीं होने चाहिये।
अब भारत की जेलों में जिसको केन्द्रीय जेल कहा जाता है, उनमें क्षमता 1 लाख 87 हजार 543 कैदियों की है, लेकिन 2022 तक इनमें 2 लाख 17 हजार 500 के करीब कैदी जमा थे।
मेडिकल अफसर भी जेलों में नहीं है
भारतीय जेलों की बात की जाये तो 697 मेडिकल ऑफिसर के पद स्वीकृत हैं, लेकिन 445 डॉक्टर ही नियुक्त हैं। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि जेलों में बंद लाखों कैदियों के स्वास्थ्य और मानसिक हालत किस प्रकार की रहती होगी।
मानवाधिकार जेल में खत्म हो जाते हैं
अमेरिका मानता है कि भारतीय जेल अत्याचार का केन्द्र हैं। यहीं से भारत के साथ मित्रता पर सवाल खड़े हो जाते हें और बार-बार संयुक्त राज्य सवाल उठाता है कि भारत में मानवाधिकार की स्थिति को सुधारा जाये।
मानवाधिकार आयोग को एक संवैधानिक पद बनाया गया है लेकिन वहां पर रिटायर्ड न्यायिक अधिकारियों को नियुक्त किया जाता है और इस तरह से यह राजनीतिक नियुक्ति हो जाती है। अब राजनीतिक नियुक्ति में अधिकारी का कर्तव्य बन जाता है कि वह अपने सरकार की रक्षा करे। इस तरह से मानवाधिकार आयोग मात्र नोटिस भेजने वाली संस्था बनकर रह जाती है।
अगर सुप्रीम कोर्ट के कार्यरत न्यायधीशों को ही नियुक्त किया जाये और उनका ट्रांसफर नियमित रूप से होता रहे तो इससे यह संस्था क्रियाशील और ज्यादा प्रभावी हो सकती है। अब एक रिटायर्ड अधिकारी से यह आशा की जाये कि वह अपने नियोक्ता को नजरांदाज कर दे तो उसके लिए भी मुश्किल कार्य हो जाता है।