श्रीगंगानगर। अमेरिका और रूस के बीच सहमति बन जाने के कारण युक्रेन युद्ध का अंत हो सकता है। काला सागर में शांति लौट सकती है। वहीं मोदी जो लड़ाई देश के बाहर ले गये थे, क्या अब उनके गले में बड़े हार के साथ पडऩे वाली है।
कश्मीर में आतंकवाद नहीं था बल्कि एक मसला था। मसला यह था कि किसी तरह से भारत सरकार पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाया रखा जा सके कि वह किरायेदार है और मूलभूत राज्य का सिद्धांत वह भूल नहीं जाये।
एक गुजराती हुआ था हर्षद मेहता। उसने शेयर बाजार को मैनेज करना दुनिया को सिखाया था। वह फार्मूला मोदी के पास भी था और उन्होंने वह फार्मूला अमेरिका, फ्रांस आदि मुख्य राष्ट्रों तक पहुंचा दिया और देखते ही देखते वहां पर कुछ कंपनियां ट्रिलियन डॉलर्स तक पहुंच गयीं।
इसका लाभ यह उठाया गया कि कश्मीर मसले का अंतरराष्ट्रीयकरण रोक दिया गया और ठीकरा रूस पर फोड़ दिया गया। रूस को दुनिया की नजरों में खलनायक बना दिया। धीरे-धीरे यह जानकारी दुनिया के हर कौने पर पहुंच गयी। यहां तक कि टेल के किसान तक भी।
आखिर में नतीजा क्या निकला। डोनाल्ड ट्रम्प की व्हाइट हाउस में वापसी हो गयी और वे शांति समझौता ले आये। उस समझौते में रूस भी शामिल हो गया। अब वह समझौता सिरे चढ़ सकता है।
जो कश्मीर मसले को वे अंतरराष्ट्रीय मंच से हटा चुके थे। वह लड़ाई अब उनके गले का हार बनने बनने वाली है। यह लड़ाई अब वापिस लौट रही है। अंतरराष्ट्रीय मंच हो या भारत के घर-घर से यह आवाज आ रही है कि मोदी ने जो किया वह बहुत ही गलत था। उन्होंने किरायेदार कानून में बदलाव लाने की कोशिश की किंतु वह कामयाब नहीं हो पाये।
किरायेदार को मकान खाली करने का नोटिस आ गया है। पाकिस्तान में जिस प्रकार पिछले एक हफ्ते के दौरान जो घटनाएं हुई हैं, उससे साफ हो रहा है कि पाकिस्तान कश्मीर मसले का हल निकालने के लिए अब अंतरराष्ट्रीय मंच का बेहतर इस्तेमाल कर सकेगा।