-पत्रकार के खिलाफ साजिश रच रहे हैं यूरोपीय नेता, भारत सरकार
– ब्रिटिश किंग चाल्र्स ने ट्रम्प को अपने साथ मिलाने के लिए दिया राष्ट्रमंडल की सह अध्यक्षी का प्रस्ताव
श्रीगंगानगर। भारत सरकार ही नहीं यूरोपीय नेताओं के समक्ष इस समय सबसे बड़ी मुसीबत यह हो गयी है कि उनको अब हथियारों की खरीद के लिए दर-दर की ठोकरें खाने को मोहताज होना पड़ सकता है।
रूस ने भारत, यूरोपीय सरकारों को हथियार देने से इन्कार कर दिया है। वहीं अमेरिका ने 58 हजार करोड़ के सौदे को निरस्त कर दिया है। चीन, भारत, यूरोपीय संघ नया गठजोड़ बनाने की तलाश में हैं लेकिन इन सभी का सुपर बॉस अमेरिका है। इन सभी का व्यापारिक और अन्य रिश्ते यूएसए से जुड़े हैं।
सबसे बड़ी बात यह है कि ट्रम्प के आते ही खलबली मच गयी। पूरी दुनिया पर टैरिफस का एलान कर दिया। अमेरिका के पास स्वयं का इस्पात का खजाना है लेकिन स्थानीय कंपनियां दूसरे देशों से इसलिए आयात करती थीं ताकि मुद्रांकांतर के कारण वह सस्ती पड़ता था।
अब सवाल यह भी है कि ब्रिटिश शासक चाल्र्स ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को ऑफर दिया है कि वे उनके साथ आ जायें। वे उनको राष्ट्रमंडल खेलों का सहअध्यक्ष बना दूंगा। चाल्र्स ने यह संदेश अपने प्रधानमंत्री कीर स्टार्रमर के हाथों भिजवाया है।
इस पर ट्रम्प ने कोई जवाब नहीं दिया और पत्र को अपने पास सुरक्षित रख लिया। इस दौरान ही उन्होंने भारत, यूरोपीय नेताओं के गठजोड़ को करारा झटका दे दिया। सौदे निरस्त कर दिये।
असल में 90 मिनिट्स की वार्ता के दौरान ट्रम्प और रूस के ब्लादीमिर पुतिन के बीच रक्षा सौदों को लेकर भी चर्चा हुई थी। भारत रूस से सबसे ज्यादा आयात करता था। अब रूस हथियार नहीं दे रहा। बाइडेन प्रशासन के समय कमला हैरिस वकालत करती थीं और रक्षा सौदे हो रहे थे।
अब 58 हजार करोड़ के सौदों को निरस्त कर बड़ा संदेश दे दिया गया है। अब न तो रूस हथियार देगा और न ही वाशिंगटन। दुनिया में यही दो प्रमुख देश हैं जिनके पास हथियारों का जखीरा है। नई टैक्रोलॉजी है। इनकी टैक्नोलॉजी का मुकाबला कोई नहीं कर सकता।
अब अगर यूरोपीय देश एकजुट होकर कोई साजिश भी रचते हैं तो अमेरिका के पास परमाणु बटन तो है ही साथ ही उनके पास वह रिमोट भी है जिससे हथियारों को सिर्फ निहारने का खिलौना बनाया जा सकता है। उनके कलपुर्जे भी अमेरिका से ही आयात करने पड़ेंगे। इस तरह से यह लोग बीच बाजार में फंस गये हैं।
दूसरी ओर संवाददाता को भी टारगेट किया जा रहा है। यूरोपीय नेताओं के होठ सूख चुके हैं। चेहरे से हवाईयां उड़ी हुई हैं। अब किसी तरह से बस…रडक़ निकालनी है,इस तरह की विचारधारा पाले हुए हैं।