माउंटआबू: सनातन धर्म को नष्ट करने के लिए बार-बार प्रयास किये गये हैं। इसको अनेक शाखाओं में बांट दिया गया। हिन्दू अलग कर दिये गये और जैन, पारसी, बुद्ध, राधास्वामी, ब्रह्मकुमारी जैसे अनेक समुदाय बना दिये गये। यह लोग खुद को सनातनी होने से इन्कार करने लगे क्योंकि इनको धन की पूर्ति ईटली से हो रही थी।
1970 से लेकर अगर 2024 तक देखें तो 60 ट्रिलियन डॉलर जिसकी गिनती रुपयों में शायद ही हो पाये। एक ट्रिलियन डॉलर का अर्थ होता है करीबन 85 लाख करोड़ रुपये।
यह रुपया आम भारतीयों के पास गया ही नहीं जो ठेकेदार थे, वे जमींदार बन गये। राजनेता बन गये। मंत्री, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक पहुंच गये। जिनको साथ जोड़ा गया उनको लॉलीपाप दिया गया और वे आज भी उसका आनंद प्राप्त कर रहे हैं।
अमेरिका की ट्रेजरी से निकला धन सीधा ईटली जाता था। वहां से यह धन भारत में उन शक्तियों के हाथों में पहुंचाया जाता था, जो सनातन विरोधी हों। सनातन धर्म को नष्ट करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हों।
ब्रह्मकुमारी भी ऐसा ही संस्थान है। यह भी वैश्विक संस्था है, जैसे मदर टैरेसा का संस्थान। 100 से ज्यादा देश। पश्चिम में लंदन में भी कार्यालय है और वहां से विस्तारीकरण का दौर चला। हालांकि ब्रह्मकुमारी संस्थान 1930 से चालू हो गया था लेकिन वह दौर पाकिस्तान का था और उस समय भी इस संस्थान पर आरोप था कि महिलाओं को गुमराह किया जाता है क्योंकि वैवाहिक महिलाओं को भी यहां कथित रूप से ब्रह्माचार्य का पाठ पढ़ाया जाता था।
1950 के दशक में माउंट आबू में स्थापना हुई और इसको विश्वस्तरीय संस्थान बना दिया गया। माउंट आबू में हर साल पत्रकारों को भी आमंत्रित किया जाता है। देश भर से वामपंथी विचारधारा वाले पत्रकार आते हैं और तीन दिनों तक शाही अंदाज में आवास कर वापिस रवाना हो जाते हैं।
इसको राजयोग भी कहा जाने लगा। यह संस्थान लोगों को भोजन, शहर, राज्य और जिलों में भी अपने संस्थान चलाता है। इस तरह से इसका धन का प्रबंधन भी विदेशी हाथों से हो रहा था।
अब इसी राजयोग से जुड़ी एक महिला, जिनका नाम द्रोपदी मुर्मू है। जिनको पहले शायद ही कोई जानता हो। उनको राजयोगी बताया गया और देश का राष्ट्रपति बना दिया गया कि यह आदिवासी हैं। अब आदिवासी समाज के लिए जो सालों से क्या दशकों से कार्य करते आ रहे हैं, वे तो नजरांदाज कर दिये गये।
भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने द्रोपदी मुर्मू को दुनिया के सामने आदिवासी समाज के रूप में पेश किया। यह महिला ब्रह्मकुमारी से जुड़ी हुई बतायी गयी हैं। यह कौन हैं? यह कोई नहीं जानता। अनजान लोगों को राजनीति में पेश करना मोदी का पैसन बन गया है। इससे पहले वे रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बना चुके थे, जिनका कोई पृष्ठिभूमि ही नहीं थी।
इसी तरह का हाल मौजूदा राष्ट्रपति का है। अब इटली की प्रधानमंत्री के साथ मोदी के अनेक वीडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल हुए। उसी इटली के जिसके बारे में अमेरिकी सीक्रट पेपर बताते हैं कि हर साल इटली को वामपंथी विचाराधारा वाले पत्रकारों, लेखकों, समाचार पत्रों, प्रसारणकर्ताओं को धन दिया जाता रहा है। यह 1970 से आरंभ हुआ था।
नरेन्द्र मोदी जो स्वयं का हिन्दुओं का सबसे बड़ा नेता अपने आप को बताते हैं, कभी स्वयं को बंदा बहादुर, कभी छत्रपति शिवाजी, कभी स्वयं को अन्य नाम से संबोधित करते हैं। इस तरह से वे भारत में अपनी राजनीति को बनाये रखना चाहते हैं।
इसी तरह से राधा स्वामी, धन-धन सतगुरु सिरसा वाले डेरा आदि के करोड़ों अनुयायी हैं और रोजाना इनके सत्संग घर जाते हैं। वहां पर लंगर लगाया जाता है। अनेक लोग भोजन के बदले काम करने को भी तैयार होते हैं तो कई की अन्य अभिलाषा होती है। इस तरह से पश्चिमी देशों से धन इस संस्थान के पास भी आता है क्योंकि प्रत्येक शहर में विशाल और एक से ज्यादा संख्या में डेरा के नाम पर जमीनों पर कब्जेधारी हैं।
1965 के बाद भारत की राजनीतिक तस्वीर का अंदाज बदल गया
न्यूयार्क। अमेरिका सरकार ने सीक्रेट पेपर को बाहर लाकर ईटली, फ्रांस, जर्मन ब्रिटेन और उनके सहयोगी देशों को दुनिया के सामने नंगा कर दिया। एक प्रमाण आपके समक्ष पेश किया जा रहा है।
1975 में भारत देश में आपातकाल लागू कर दिया गया। 1977 में इमरजेंसी को हटाया गया। इसके उपरांत कोलकाता में ज्योति बसु को मुख्यमंत्री के रूप में दुनिया के समक्ष पेश किया गया। यह वही दौर था जब पश्चिम बंगाल में मदर टैरेसा जिनको भारत सरकार ने अनेक पुरुस्कारों से नवाजा है, ने अपने पैर कोलकाता से बाहर निकालने आरंभकर दिये थे।
भारत की राजनीतिक दृष्टि से देखें तो पश्चिम बंगाल एक महत्वपूर्ण राज्य है क्योंकि इसमें 40 लोकसभा सीट हैं। धार्मिक दृष्टि से देखें तो यह महाकाली का निवास स्थान है और सामाजिक दृष्टि से देखा जाये तो नक्सलवाद की शुरुआत इसी राज्य से आरंभ हुई थी।
सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक दृष्टि के बाद बांग्लादेश की सीमा इससे लगती है। वहीं असम राज्य की भी सीमा पश्चिम बंगाल से मिलती है। असम राज्य में कामख्या माता का मंदिर है।
पश्चिम बंगाल में ज्योति बसु की एक कम्युनिस्ट नेता और मदर टैरेसा के सामाजिक जीवन दोनों बिंदु एक दूसरे से जुड़े हुए थे।
इसका कारण यह था कि अमेरिका से धन इटली जा रहा था और वहां से मिशनरीज के लिए धन पश्चिम बंगाल में आ रहा था। इस तरह से आपसी मेलजोल का असर यह हुआ कि बसु निर्बाध रूप से 23 सालों तक अर्थात वर्ष 2000 तक सीएम रहे। 2000 के बाद उनको सीएम पद नहीं दिया गया।
कारण यह था कि 26 अगस्त 1997 को मदर टैरेसा का निधन हो गया। अब उनको जहां से राजनीतिक, सामाजिक और अन्य प्रकार का समर्थन हासिल हो रहा था, वे खत्म हो गया था। इस तरह से ज्योति बसु का राजनीतिक जीवन 2000 के बाद समाप्त हो गया। मुख्यमंत्री बदल दिया गया और फिर सत्ता ममता बनर्जी के हाथों में चली गयी किंतु हालात में बदलाव नहीं आया।