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वख बोर्ड को संसदीय भाषा में परवर समिति कहा जाता है?

श्रीगंगानगर। वख बोर्ड जो मुस्लिमों का संगठन माना जाता था और सिर्फ मुसलमानों को ही इसमें सदस्य बनाया जाता था, वह बोर्ड संसद में परवर समिति कहलाता है। अनेक बार यह माना गया है कि हमने संविधान को परवर समिति के पास भेज दिया है। वह समीक्षा करेगी।
असल में हर पल कुछ देश की जनता से कुछ छुपाया जाता है और जब नया विधेयक लाया जाता है जिसने संविधान में संशोधन किया जाना है, उस प्रस्ताव को परवर समिति के पास भिजवा दिया जाता है।
परवर को जानना है तो पहले हमें इंकलाब जिंदाबाद के नारे को याद करना होगा। इंकलाब जिंदाबाद का नारा कांग्रेस ने दिया था। कुछ सालों या दशकों बाद कांग्रेस ने अपना नाम ही चेंज कर लिया। नैशनल कांग्रेस कमेटी (इंक) कर दिया। अमेरिका में इंक एक कंपनी को बोला जाता है जैसे भारत में एलटीडी होता है उसी प्रकार यूएसए में इंक होता है। वहां पर सदन को कांग्रेस कहा जाता है और उसमें दो दल मुख्य है। रिपब्लिकन और कांग्रेस।
अब असल में इंकलाब को भगतसिंह के साथ जोड़ा गया है। इसका अर्थ यह होता है कि इंक+लाब अर्थात इंकलाब। लाब शब्द को तलाब से लिया गया है। जिसको एक विस्तृत पानी क्षेत्र या नाटा समुन्द्र कह सकते हैं। नाटा को फे्रंच में कहा जायेगा तो वह नाटो हो जायेगा।
अब ट्रम्प प्रशासन ने 80 हजार पेज जो जारी किये हैं, इसमें लाल इंक का जिक्र है। इस तरह से इंकलाब जिंदाबाद जो शब्द बना है वह उस फिलोस्पर से सबंंध है, जिसके बारे में जानकारी देना सरकार के बस की बात नहीं है। वह रहस्यमय व्यक्ति ही परवर समिति का अध्यक्ष बनाया जाता है और इस प्रस्ताव को वख बोर्ड के पास ले जाया जाता है। अब यह वख बोर्ड ही तय करता है कि कानून में क्या संशोधन होने चाहिये।

इसी तरह से हम देखते हैं कि जो पुराण और उप पुरान बनाये गये हैं, उनमें भी काफी विसंगतियां हैं। दुर्गा पुराण में आदि शक्ति को बताया गया है। विष्णु पुरान में भगवान विष्णु और शिव पुराण में भगवान शिव को आदि शक्ति बताया गया है।
इस तरह से इन पुराण में काफी विसंगतियां होने के कारण यह साफ है कि इन पुराण के साथ छेड़छाड़ हुई है या एक ही व्यक्ति ने रचित नहीं की है। अभी तक यही पढ़ाया गया है कि महाभारत के यज्ञ को देखने की शक्ति प्रदान करने वाले वेद व्यास जी ने पुराण का कथन किया है जबकि भविष्य पुराण, विष्णु पुरान और शिव पुराण में तीनों को ही लोक नायक बताया गया है। इस तरह से यह समझा जा सकता है कि शुद्ध ग्रंथों के साथ छेड़छाड़ हुई। आरएसएस की ओर से हाल ही में कहा गया है कि 50 के दशक में हमने बहुत कुछ बदल दिया था। इस तरह से जो अव्यवहारिक है, उनको विलुप्त किया जाना चाहिये।

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