न्यूयार्क। अमेरिका में सरकार को बड़ी सफलता आज प्रात: हासिल हुई जब आतंकी संगठन के एक बड़े लीडर को गिरफ्तार कर लिया गया। यह जानकारी अटार्नी जनरल टॉम बॉण्डी ने पत्रकारों को दी। एफबीआई के निदेशक काश पटेल भी उस समय उपस्थित थे।
उपलब्ध करवायी गयी जानकारी में बताया गया है कि एमएस-13 नामक आतंकी संगठन के टॉप 3 में से एक गिरफ्तार किया गया है। इसका नाम फिलहाल सार्वजनिक नहीं किया गया है। संदिग्ध के बारे में ज्यादा जानकारी भी नहीं दी गयी है।
वहीं डोनाल्ड ट्रम्प के एक और कार्यकारी आदेश को चुनौति दी गयी है और यह केस फिर से वामपंथी विचारधारा वाले जज के पास भेज दिया गया है।
उल्लेखनीय है कि अमेरिका के भीतर जजों की नियुक्ति को लेकर काफी विवाद रहता आया है। जिलास्तर से लेकर संघीय अदालत तक सभी जजों की नियुक्ति का कार्य राष्ट्रपति के पास आता है।
पिछले चार वर्षों के दौरान अमेरिका में जिलास्तर पर जो भी नियुक्तियां हुई हैं, वह वामपंथी विचारधारा वाले नेताओं की हुई हैं। इस कारण अदालत में फैसलों को लेकर भी राजनीति सामने आ रही है।
जज राजनीति से प्रेरित होकर फैसला सुना रहे हैं। अब अल सल्वाडोर की जेलों में बंद कैदियों को लेकर भी राजनीति हो रही है।
अदालतों में जब राजनीति हो रही है तो फिर संसद का क्या अर्थ रह जाता है।
अदालत के न्यायाधीश यह नहीं कह रहे हैं कि अवैध घुसपैठ न्यायोचित है लेकिन वे उनको देश से बाहर भेजने की बात को अनुचित मान रहे हैं। यहां पर जज दो दिशाओं में बंट गये हैं। या तो हां है या ना है अर्थात अवैध घुसपैठ कानूनसम्मत है तो फिर दरवाजे खोल दिये जाने चाहिये। आज हजारों की संख्या है और पांच-7 सालों में यह लाखों में हो जायेगी।
वामपंथी विचारधारा गलत नहीं है लेकिन उससे प्रेरित होकर तथ्यों को नजरांदाज किया जाना यह भी तो वास्तविक तौर पर भौतिक है। अब ट्रम्प के तीसरे कार्यकारी आदेश को लेकर भी मामला अदालत में जा रहा है तो इसका अर्थ यही है कि वामपंथी विचारधारा वाले लोग नहीं चाहते कि देश में विकास हो और जो नारा ट्रम्प का है, मेक अमेरिका ग्रेट अगेन वह पूरा हो सके।