श्रीगंगनगर। वर्ष 1964 और उससे पहले से चले आ रहे डाई कार्यक्रम की समीक्षा करें तो सामने आता है कि अनेक मंदिर ऐसे हैं, जो डीआईई अभियान के तहत चलाये जा रहे हैं।
उत्तरा खण्ड में बदरीनाथ और केदारनाथ ऐसे ही मंदिर हैं। यह घोटाला है, इसको बकायदा अखबारों में नि:शुलक प्रकाशित भी करवाया जाता है। बदरीनाथ-केदारनाथ के कपाट से संबंधित समाचार आता है तो कपाट का अर्थ हो जाता है दरवाजा और दरवाजा को अंग्रेजी में गेट कहा जाता है।
रिचर्ड निक्सन तो 1974 में वाटर गेट के कारण चले गये लेकिन उससे पहले और उसके बाद चलते रहे डाई कार्यक्रम के तहत अनेक ऐसे मंदिरों का भी निर्माण किया गया और उनको चमत्कारिक मंदिर कहा गया।
भगवान श्रीरामचंद्र जी ने कभी कोई चमत्कार नहीं किया बलिक बात के धनी थे और जो वचन दे दिया, उसको पूरा कर देते थे। इसलिए उनको मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीरामचंद्र जी कहा जाता है। इस तरह से चमत्कार तो जादूगर भी बहुत दिखाते हैं, देखते ही देखते नोट की झड़ी लगा देते हैं। फिर भी देश से गरीबी को दूर नहीं कर पाये ओर अपने शोज को चलाने के लिए टिकट बेचनी पड़ती है।
इस तरह से 1947 से पहले दूसरा विश्व युद्ध हुआ था, उस समय यह व्यवस्था की गयी और मंदिरों तथा अन्य राजशाही परिवारों का इतिहास रचा गया। इसमें कांग्रेस, आरएसएस सभी तरह के लोग शामिल थे। इस तरह से अनेक मंदिर, मस्जिद, चर्चघर का निर्माण करवाकर उसके नजदीक ही गेट बना दिया गया।
कैद आर नाथ बन गया केदारनाथ। जिले से बाहर भेजने वाले को बदर कहा जाता है और उसके साथ ई की मात्रा एड कर बना दिया गया बदरीनाथ। इस तरह से यह मंदिर बन गये।
अब अजमेर की दरगाह को ही लीजिये, वह इतिहास में कहीं नहीं है और सरकारी गजट नोटिफिकेशन भी कहता है कि वह दुर्गा ख्वाजा मंदिर दरगाह है। यह डाई कार्यक्रम का ही पार्ट है।