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ताज महल तो ‘एकम’ हिन्दू देव का स्थान है!

श्रीगंगानगर। जब किसी स्थान या व्यक्ति का नामकरण होता है तो उस समय भौतिक परिस्थितियों को देखा जाता है। दुनिया की बात नहीं करते हुए अगर संवाददाता अपने स्तर पर ही ले तो उसका नामकरण भीम से हुआ। नामकरण करने वाले पंडित जी कहकर गये थे कि यह बलशाली होगा, इसलिए नाम भीम रखा गया।
अगर कदम को और बढ़ाएं तो 2014 में नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही कहा था कि इतिहास को गलत पढ़ाया गया है।
अगर उनके दावे और नामकरण के लिए बनाये गये फार्मूले को देखते हैं तो ताज महल तो सिक्का का पहलू है या वह नकाब है।
उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में एक स्थान है, जिसको मकबरा कहा जाता है, नाम रखा गया है ताजमहल।
इसकी कहानी बनायी गयी है कि सलीम ने अपनी प्रेमिका मुमताज की याद में इसको बनाया था। इस कहानी को वजनदार बनाने के लिए बॉलीवुड को आगे किया गया और पहली हिंदी फिल्म जो बोल सकती थी, का नाम ही मुगल-ए-आजम रखा गया।
इससे पहले की फिल्मों में आवाज नहीं होती थी और इशारा से ही समझना पड़ता था कि कलाकार क्या कह रहा है।
इसके बाद तो अनेक फिल्मों का निर्माण हुआ और इसे ताजमहल मकबरे के नाम से प्रसिद्ध किया गया। विदेशों से आने वाले मेहमानों को भी ताजमहल दिया जाता था और उसे गंगा-यमुना संस्कृति का नाम दिया जाता था।
खैर, जो भी हुआ, अच्छा तो नहीं हुआ। आगरा के ताज महल के नाम को जब डीकोड किया जाता है तो सामने आता है कि वह एक हिन्दू देवता का स्थान है जिसको मकबरा कहा जा रहा है। उसी तरह से जैसे अजमेर में दुर्गा के स्थान को ख्वाजा पीर के नाम से संबोधित किया जाता है जबकि राज्य सरकार के गजट नोटिफिकेशन में दुर्गा नाम अवतरित होता है।
ताजमहल को डीकोड करते हैं तो सामने आता है बाबो एसीएम ए एचडी है। अब ए.सी.एम.ए. को अन्तिम नाम दिया जाये तो सामने आता है ‘‘बाबा एकम् अवतरित हिन्दू देव’’ है।
इस कहानी को पू्रफ करने के लिए हमारे पास शिव तांडव की कथा भी है जो ग्रंथों में लिखी गयी है। शिव तांडव के अनुसार भगवान शिव के ससुर दक्ष प्रजापति ने अपने निवास पर यज्ञ का आयोजन किया। इसमें भगवान को आमंत्रित नहीं किया गया और माता सती को बुलाया गया था। वहां पर अपने पति का अपमान देखकर देवी सती ने उसी यज्ञ कुंड में कूदकर जान दे दी थी।
महादेव क्रोधित हो गये और मां सती की देह को उठाकर तांडव करने लगे। इससे भूकम्प आ गया और लोग थर-थर कांपने लगे। सृष्टि का विनाश नहीं हो जाये, भगवान विष्णु ने सती की देह को टुकड़ों में बांट दिया। 51 स्थानों पर मां भगवती की देह के भाग गिरे और उन स्थानों पर शक्तिपीठ स्थापित किये गये। इस तरह से नैयना देवी, चिंतापूर्णी, वैष्णो देवी, ज्वाला जी, मनसा देवी, कांगड़ा जी, कामख्या, वसुंधरा, जया, विजया जैसे अनेक नाम से मंदिरों की स्थापना हुई। इन मंदिरों का निर्माण पांडवों ने किया। इस कारण मां भगवती के जागरण में शिव तांडव का जिक्र भी होता है।
इस कथा का इसलिए जिक्र किया गया है, क्योंकि प्रेम की कथाएं सिर्फ अरब से ही नहीं आयी हैं बल्कि साक्षात हिन्दुस्तान में भी दर्ज हैं। भगवान शिव का मां सती के प्रति जो स्नेह था, वह कभी आधा-अधूरा नहीं कहा जा सकता। उन्होंने माता के प्रति स्वयं को समर्पित कर दिया था।
इसी तरह से शक्ति की बात करें तो भगवान विष्णु के साथ भी मां लक्ष्मी का साक्षात रूप दिखाई देता है। इसी तरह की कथा है कि मां लक्ष्मी एक बार रूठ कर चली गयी थीं तो उस समय भगवान विष्णु ने स्वयं को आधा-अधूरा पाया था और मां को मनाकर लाये थे।
यह कहानियां नहीं बल्कि सच्ची घटनाएं हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी भारत में सुनाई जाती है और संस्कृति के बारे में बताया जाता है।
जब भारत देश में मुगलों का राज ही नहीं रहा तो सलीम और अकबर कहां से आ गये थे। यह वो इतिहास है जो 1964 को अमेरिका के राष्ट्रपति की हत्या के बाद दुनिया को बताया जाने लगा था।
इसको डाई कार्यक्रम कहा गया और इस कार्यक्रम में लोग पैसों की खातिर अपने धर्म, कर्तव्य आदि को भी भूल गये। हर साल तीन ट्रिलियन डॉलर की राशि भारत में आती थी और यह कुछ लोगों तक सीमित होकर रह जाती थी। इसका कुछ भाग रूंगा-झुंगा के रूप में बांट दिया जाता था।
यह सब अमेरिका सरकार के सीक्रेट सर्विस के सरकारी पन्नों पर लिखा हुआ है और जेएफके अर्थात जूनियर एफ कनैडी की फाइल्स के नाम से जाना जाता है। कनैडी की 1964 में गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी। इस तरह से यह एक पूरी सत्य कथा आप लोगों के सामने रख देता हूं।
जिसको मकबरा अर्थात मजार कहा जा रहा है, असल में वह एक विराट हिन्दू देव का पूजनीय स्थल था जिसको कांग्रेस ने अपने शिक्षा क्षेत्र में बदलाव करते हुए उसे सलीम आदि का बनाया हुआ मकबरा घोषित कर दिया गया।

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