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क्या भारत और अमेरिका युद्ध के मैदान में फंस रहे हैं?

श्रीगंगानगर। अमेरिका में जिस तरह की हलचल देखी जा रही है और उससे पता चलता है कि अमेरिका कुछ खास करने वाला है। प्रशांत महासागर में युद्धपोत को देखे जा रहे हैं।
डब्ल्यूएचओ, डब्ल्यूटीओ सहित कई वैश्विक संस्थानों से बाहर आने के कारण यह संगठन अप्रभावी हो गये हैं। इनका अस्तित्व नहीं रहा है।
अगर भारत गणराज्य सरकार की चर्चा की जाये तो अमेरिका के साथ पिछले पांच सालों से वार्ता के बाद बीजेपी की नरेन्द्र मोदी सरकार कदम को पीछे नहीं हटा रही थी। उसका मानना था कि मात्र दो इंजन की सरकार के नारे से ही उनका काम सारी उम्र चलता रहेगा।
अमेरिका के युद्ध पौत प्रशांत महासागर में पहुंच गये हैं। माना जा रहा है कि युद्ध जो होगा वह म्यांमार के रास्ते हो सकता है। कुछ दिन पूर्व म्यांमार के शासक को एक देश के राष्ट्रपति के साथ देखा गया था। उनको रूस का सम्मान भी प्रदान किया गया।
अमेरिका का सहयोग करने वालों में जी-7 और नाटो के सदस्य देश शामिल है। इस तरह से मोदी को पहली बार चारों तरफ से घेर लिया गया है।
मोदी सरकार जिस एस जयशंकर की तारीफ के गुणगाया करती थी। उसी विदेश नीति को सबसे सफल बताया जा रहा था और अनेक मुस्लिम देश का सम्मान भी मोदी को दिया गया था। इस तरह से जहां भी मीडिया का मौका मिलता, वे मोदी-मोदी के गीत गाया करता था। अब यूएसए ने एनएसए, मित्र गौतम अदाणी, उसके भतीजे सागर अदाणी आदि के खिलाफ सम्मन जारी किया हुआ है।
इस तरह से युद्ध का माहौल बना हुआ है और हाल ही में राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा था कि वे शीघ्र ही सभी देशों पर टैक्स लगा रहे हैं जो 25 प्रतिशत होगा और 2 अप्रेल को मुक्ति दिवस के दिन लागू हो जायेगा।
अगर एक बात बतायी जाये कि यह पहला युद्ध होगा असली में लड़ा जायेगा। अमेरिका के पास ज्यादा सेना है। मजबूत हथियार हैं। सभी क्षेत्रों में युद्ध करने का अनुभव भी है। वहीं भारतीय सेना के पास रूस, अमेरिका और फ्रांस निर्मित हथियार हैं।
कूटनीति के लिए किये गये सभी प्रयास असफल हो चुके हैं और अमेरिका के पास अब मानवाधिकार को बचाये रखने, मानवता को संरक्षण देने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।
जो छल कपट मोदी सरकार ने किया है, उसको अमेरिका ने साफ तौर पर देखा है। हालांकि ब्रिटेन अभी भी मोदी सरकार के साथ दिखाई देता है। फ्रांस सहित कई अन्य यूरोपीय देश अब अमेरिका के साथ नजर आने लगे हैं। राष्ट्रपति मैक्रां का कहना है कि 27 बिलियन डॉलर जुटाये गये हैं।
वहीं अमेरिका ने पुनर्विकास कार्यक्रम के तहत बड़ी रकम अर्जित की है। इस तरह से एक तरफ अकेला भारत है तो दूसरी तरफ हथियारों से निर्मित विश्व के अन्य सभी देश। यहां तक कि नेपाल ने भी अपनी सेना को एक बार काठमांडू और बॉर्डर के आसपास नियुक्त करते हुए कफ्र्यू लगा दिया है। सुबह ही आपातकाल लागू कर दिया गया था।
अगर मीडिया इनपुट और अन्य स्रोत से जानकारी हासिल हुई है, उससे साफ हो रहा है कि दोनों देशों के बीच संबंध मधुर नहीं रहे हैं।

डाई कार्यक्रम बंद होने के बाद श्रीगंगानगर में भारी हलचल
श्रीगंगानगर। पंजाब के रास्ते श्रीगंगानगर में ईटली और यूएसए से आने वाला धन क्षेत्र के ‘विकास’ को आगे बढ़ा रहा था। अब डाईंग कंपनी के मालिक भी खतरे में है क्योंकि इनकमिंग बंद हो गयी है।
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प के नेतृत्व वाले प्रशासन ने यूएसएड को बंद कर दिया है। इसके सभी कर्मचारियों को हटाने की तैयारी की जा रही है। अधिकांश कर्मचारियों को सवैतनिक अवकाश पर भेज दिया गया है।
इस बीच यह सत्य है कि ‘कैंसर’ का खतरा अभी तक टला नहीं है। वाशिंगटन मदद बंद होने के बाद अनेक नेता अपना नियंत्रण खो रहे हैं और सोशल मीडिया पर चैलेंज किया जा रहा है।
अकाली दल के पूर्व प्रधान सुखबीरसिंह बादल के एक रिश्तेदार ने गत दिवस ही सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल की और इसमें चैलेंज की धमकी दी गयी।
तमिलनाडू, आंध्रप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, गुजरात ऐसे राज्य थे, जहां पर सर्वाधिक राशि आती थी। राजस्थान के कोटा, बीकानेर और जोधपुर संभाग में इस राशि का वितरण हुआ करता था। इस तरह से यह नेता लोग भी अब पशोपेश में हैं कि आखिर जाये तो जाये कहां।
अमेरिका से आने वाले डाई अभियान से श्रीगंगानगर के अनेक पत्रकार, मीडिया हाउस, राजनीतिक दलों को चंदा मिला करता था। अब यह चंदा बंद हो गया है। सोच रहे हैं कि इधर या उधर किसी तरफ के नहीं रहे। इससे बड़ी राशि जयपुर और देश के अन्य हिस्सों तक पहुंचती थी।
यूएस हर साल 1.6 ट्रिलियन डॉलर जारी करता था। गणराज्य का बजट 40 से 45 लाख करोड़ रुपये होता था। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि कितनी बड़ी रकम हर साल भारत आती थी। भारत के कुल बजट से कई गुणा ज्यादा पैसा बाजार में आता था और महंगाई का कारण बनता जा रहा था।
केन्द्र को इन कारणों का पता नहीं हो, यह संभव नहीं है। दिल्ली तक भी राशि पहुंचती थी और सभी राजनीतिक दल इसका फायदा उठा रहे थे।
श्रीगंगानगर के टांटिया हॉस्पीटल और मेडिकल कॉलेज तक पैसा ही नहीं बल्कि अप्रोच भी थी और एक फोन पर सारे काम हो जाया करते थे। इसी तरह से अनेक अन्य संस्थान थे। अब अप्रोच बंद हुई है तो लोग घरों में रखे गये सोने से खरीददारी कररहे हैं और सोना 90 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम पहुंच गया है। एक साल के भीतर ही सोने के भाव 60 से 90 हजार तक पहुंच गये। इस तरह से अब जो है उसको खपाया जाये। यही तरीका रह गया है।

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