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कोयला को मुख्य धारा में लाने के लिए ट्रम्प ने जारी किये कार्यकारी आदेश

वाशिंगटन डीसी। अमेरिका का स्टॉक मार्केट मंगलवार को ऊंचाई की ओर जा रहा था। सोमवार को जो घाटा हुआ था, उसको पूरा करने की कोशिश थी क्योंकि एक समय डाउजोंस 1 हजार प्वाइंट ऊपर की ओर जा रहा था। उसी समय व्हाइट हाउस से एक समाचार आया और बाजार फिर से घाटे के साथ बंद हो गया।
भारत में भी मंगलवार को शेयर बाजार को सरकारी एजेंसियों ने प्रभावित किया और यह दिखाने की कोशिश कि अमेरिका के टेरिफ का कोई असर देश में नहीं है। इसी तरह की कोशिश शाम को अमेरिकी बाजार खुलने पर प्रमुख उद्योगपतियों ने की, किंतु वे सभी हैरान रह गये क्योंकि व्हाइट हाउस ने चीन पर आयात का 104 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया।
इसके कुछ समय बाद ही राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प एक बार फिर से सक्रिय दिखे क्योंकि कोयला खनन का काम करने वाले मजदूरों को पहली बार व्हाइट हाउस में बुलाया गया और इन मजदूरों के साथ चर्चा की और कहा कि कोयला का खनन कार्य बढ़ाया जायेगा। उन्होंने मजदूरों की उपस्थिति में कोयला सैक्टर से जुड़े कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर भी किये।
उन्होंने कहा, ‘हम अपनी क्षमता का सदुपयोग नहीं कर रहे हैं और आयात पर निर्भर हो रहे हैं। यूएसए अब अपने देश में कोयला खनन के कार्य को प्राथमिकता देगा।’ उल्लेखनीय है कि अमेरिका में इस समय 37 प्रतिशत बिजली कोयला आधारित संयंत्रों से आती है जिसको अब बढ़ाकर 50 प्रतिशत किये जाने की जानकारी दी गयी।
मोदी और अडाणी को संदेश
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कोयला क्षेत्र को पुरानी पहचान दिलाने वाले कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर करते हुए सीधे तौर पर भारत गणराज्य के नरेन्द्र मोदी और उनके नजदीकि उद्योगपति गौतम अडाणी को सीधे तौर पर संदेश दिया। भारत कोयला उत्पादन में शीर्ष पर है। झारखण्ड, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और उड़ीसा में कोयला खनन का कार्य होता है। वहीं गौतम अडाणी ने ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में कोयले की खान ली हुई है और इसको लेकर ऑस्ट्रेलिया के पर्यावरण कार्यकर्ता आंदोलन करते हैं। अडाणी का निर्यात कितना है, इसका अनुमान तो नहीं है लेकिन ऑस्ट्रेलिया हर वर्ष 83 बिलियन डॉलर का निर्यात करता है। वह विश्व में दूसरे नंबर पर है। पहला स्थान इंडोनेशिया का है।
यूएसए की नीति, अमेरिका फस्र्ट
अमेरिका ने अपने देश को प्राथमिकता अर्थात अमेरिका फस्र्ट नीति का जयघोष करके स्वदेशी उत्पादकों को बढ़ावा देने का एलान किया है। इसी कारण आयात किये जाने वाले पदार्थों पर नये सिरे से टैरिफ लगाये जा रहे हैं। अमेरिका के कोयला उत्पादन को बढ़ावा देने की नीति का असर सीधे तौर पर नरेन्द्र मोदी और अडाणी को होना है। भारत देश में अनेक कोयला के खनन कार्य अडाणी के पास है। ऑस्ट्रेलिया हो या भारत दोनों ही स्थानों से कोयला बाइडेन-हैरिस के समय अडाणी के ही गोदामों से जाता था। अब इसमें बदलाव संभव हो सकेगा।
तेल सस्ता फिर भी टैक्स बढ़ाया क्यों?
टैरिफ युग में तेल उत्पादक देशों ने कच्चे तेल के भाव कम कर दिये हैं। इसके बावजूद भारत ने तेल की कीमतों को कम नहीं किया बल्कि 2 रुपये प्रति लीटर उत्पादन कर बढ़ा दिया गया। ऐसा क्या हुआ कि सरकार को टैक्स बढ़ाने पड़े। इस संबंध में एक अमेरिकी मीडिया ने रिपोर्ट दी है कि जो 104 प्रतिशत कर लगाया गया है, असल में वह डिप्लोमैटिक रूप से तो चीन है किंतु असल में टारगेट मोदी सरकार को किया गया है। लेफ्ट राइट है और राइट लेफ्ट है। यही तो राजनीतिज्ञों की शैली होती है।
उधर अमेरिकी सरकार ने टैक्स बढ़ाये, इधर सरकार ने गैस और पेट्रोलियम पदार्थों पर नया टैक्स लगा दिया। इस तरह से सरकार ने प्रतिबंधों का सामना करने के लिए सीधे तौर पर उपभोक्ताओं की जेब को हल्का कर दिया। 1 गैस सिलेंडर को 50 रुपये महंगा कर दिया गया तो दूसरी ओर 2 रुपये टैक्स बढ़ा दिया। इससे 80 करोड़ लोगों के प्रभावित होने की संभावना है।
सेना ने भी गतिविधियों में इजाफा किया
वहीं अमेरिका ने मध्य एशिया में अपनी सेना की गतिविधियों को बढ़ा दिया है। कल गुरुवार को जहां रूसी नेताओं के साथ यूएसए की बैठक हो रही है तो दूसरी ओर ईरान सरकार से भी वार्ता का प्रस्ताव किया जा रहा है। राष्ट्रपति और पेंटागन प्रभारी पीट हेगसेथ ने अमेरिकी सेना को सीधे तौर पर कह दिया कि वे किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहें। 30 हजार सैनिकों को मध्य एशिया में ठहराया गया है। सेना की क्षमता को बढ़ावा देने के लिए रिटायर्ड कर्मचारियों से भी पेंटागन वार्ता कर रहा है ताकि उनको वापिस लाया जा सके। माना जा रहा है कि मध्यपूर्व एशिया में अपनी उपस्थिति 50 हजार तक दर्ज करवाने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं।
मोदी झोली उठाकर तो जाने वाले नहीं!
अमेरिका को भी इस बात की जानकारी हो चुकी है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी ने जिस झोली की बात कही थी, वह झोली को उन्होंने समाप्त कर दिया है और अब वे दूसरी झोली उठाकर जाने वाले नहीं है। उल्लेखनीय है कि नरेन्द्र मोदी ने कहा था जब गद्दी का ‘वारिस’ आ जायेगा तो वे झोली उठाकर चले जायेंगे। अब अमेरिका उनको वापिस गुजरात भेजना चाहता है। इसका कारण है कि भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को मोदी सरकार ने समाप्त कर दिया है और उन संस्थाओं पर असंवैधानिक तौर पर कब्जा कर लिया है। कैग, सीवीसी, सुप्रीम कोर्ट, आरबीआई, सेबी जैसे अनेक संस्थान हैं, जिनका भय पहले अधिकारियों आदि में दिखाई देता था। अब उस को समाप्त कर दिया गया है।

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