
श्रीगंगानगर। मेहनत का फल अवश्य मिलता है, यह एक पंक्ति दुनिया के करोड़ों लोगों को कड़ी मेहनत के लिए प्रेरित करती रही है, लेकिन पिछले पांच सालों में देखें तो दुनिया को ही सटोरियों ने बदल दिया। मेहनत के स्थान पर सट्टाबाजी हावी हो गयी।
अगर पांच साल पहले शेयर बाजार को ही देखें तो भारत में बीएसई 32 हजार के आसपास था। डोनाल्ड ट्रम्प के चुनाव जीतने से पहले यह 86 हजार के अंक को छू गया था जो फिलहाल 73 हजार प्वाइंट पर ट्रेड कर रहा है। यह वृद्धि करीबन 40 से 50 हजार प्वाइंट के बीच रही।
इसी तरह से वर्चुअल इंकम का एक और साधन जिसको आभासी मुद्रा कहा जाता है, नाम है बिटकॉइन। बिटकॉइन की पांच साल पहले कीमत थी 5 लाख 24 हजार के आसपास। यह आकड़ा 21 अप्रेल 2020 का है। आज इसकी कीमत है, 66 लाख 98 हजार रुपये। पांच सालों में बिटकॉइन ने 1177 प्रतिशत वृद्धि की।
अब हम गोल्ड प्राइस को देखें तो 2014 में इसकी कीमत थी 28 हजार रुपये के आसपास, प्रति दस ग्राम। आज इसकी कीमत 90 हजार के करीब है। इस तरह से 10 सालों में कीमत 60 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम बढ़ गयी।
अब अनुमान लगाया जा सकता है कि गुजरात मॉडल ने किस तरह से लोगों को व्यापार आदि को त्यागकर वैकल्पिक आय से अमीर बनने का ख्वाब दिखाया गया। नये अरबपति, करोड़पति तैयार किये गये। मीडिया का नया चेहरा पेश किया गया।
अब सोना तस्करी होता है रूस से दुबई और दुबई से भारत। रूस और भारत के बीच करीबन 6 लाख रुपये प्रति किग्रा सोने के भावों में अंतर है। दुबई में गौतम अडाणी का भाई प्रवीण अडाणी है। वह भी अब खरबपति या उससे भी बड़ा व्यापारी बन चुका है। यह 10 सालों के भीतर हुआ है।
गौतम अडाणी को जयपुर, अहमदाबाद आदि का एयरपोर्ट दिया गया है और इन दोनों एयरपोर्ट पर ही दुबई से ज्यादा फ्लाइट आती है। इसको कम अक्षरों में ज्यादा समझा जा सकता है।
पांच सालों के भीतर फ्रांस, रूस, दुबई का चेहरा ही बदल दिया गया। भारत में यह 0.1 प्रतिशत लोगों को अमीर बनाया गया।
शेयर बाजार, सोने, बिटकॉइन के माध्यम से देश की जीडीपी को बढ़ाने का प्रयास किया गया, किंतु यह सब कागजी फूल थे, जो अब लगातार कमजोर होते जा रहे हैं। अब यह लगभग तय हो गया है कि भारत की राजनीति नया रंग लेने वाली है।
बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर तो कहीं दिखाई ही नहीं दी। दिखाने के लिए गौतम अडाणी, मुकेश अम्बानी, जिंदल स्टील, बजाज स्टील, कुमार मंगल बिरला, टाटा समूह आदि थे। इन पांच-सात गु्रप को ही ऊंचाई का मार्ग दिखाकर देश का भविष्य दिखाया जाने लगा और पहले पांच ट्रिलियन और फिर 10 ट्रिलियन तथा 2047 तक विकसित भारत का सपना दिखाया गया।
जो हालात हैं, उससे भारत विकसित राष्ट्र अगले 50 साल तक नहीं बन सकता। मेहनत वाले व्यवसाय को तो भगवान भरोसे छोड़ दिया गया। नयी फायनेंस कंपनियां बनाकर उनमें उलझा दिया गया। लोग कर्जे या रियल इस्टेट या वर्चुअल करंसी या स्टॉक मार्केट में उतार-चढ़ाव को देखकर अमीर होने का स्वांग रचने लगे।
भारतवासियों को मजबूत भारत का सपना दिखाने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का ख्वाब दिखाया गया। 700 अरब डॉलर को पार कर गया किंतु इस दौरान रुपया भी तो 60 से 85 रुपये तक का सफर गया था। घाटे की पूर्ति करने के नाम पर ज्यादा रुपये छापे गये ओर इन रुपयों के माध्यम से विदेशी मुद्रा खरीद की गयी और इस कारण रुपया भी कमजोर होता चला गया।
रुपया कमजोर हो रहा है, इसकी जिम्मेदारी भी सरकार ने नहीं ली बल्कि यह भी वाहन चालकों पर डाल दी। पेट्रोल के आयात का मुद्दा बनाकर उसमें भी मिलावट आरंभ कर दी। इथैनाल की मिलावट कर गाडिय़ों को समय से पहले बुढ़ा कर दिया गया। इस तरह से रुपया कमजोर होता जा रहा था।
शेयर बाजार की चर्चा करें तो नवंबर से लेकर अपे्रेल तक 10 हजार या इससे ज्यादा प्वाइंट की कमी आ चुकी है। कारण यही है कि अमेरिका में सत्ता परिवर्तन हो गया है। वहां पुराना प्रशासन जो मदद करता था नहीं रहा। अब वहां पर अर्थव्यवस्था का प्रारूप बदला जा रहा है।
भारत में गत दिवस शेयर को थामने की जिम्मेदारी कुछ एजेंसीज आदि को दी गयी। अमेरिका में पिछले पांच दिनों में ही 20 प्रतिशत बाजार में कमी आ चुकी है। वहां पर भी एक कागजी ढांचा तैयार किया गया था और यह ढांचा अब गिर रहा है।
जो वर्चुअल बाजार दिखाया गया था, वह वर्चुअल बाजार तो धराशायी हो गया।