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अमेरिका के बिना ‘विकसित भारत’ की कल्पना संभव है?

श्रीगंगानगर। अगर हम यूरोप और अमेरिका की यात्रा करते हैं तो वहां पर आधारभूत ढांचा की तारीफ करते हैं। वह सब उन देशों को विकसित राष्ट्र की श्रेणी में लाकर खड़ा कर देता है।
कनाडा, यूएसए, यूरोपीय संघ के फ्रांस, इटली, जर्मनी सब विकसित राष्ट्र हैं और इन देशों के नागरिकों की आय 12 : 1 औसत की है अर्थात इन देशों में एक माह में कमाया गया धन भारत के 12 महीने के लगभग बराबर होता है। यह औसतन है।
प्रथम 10 अमीर आदमियों की तुलना करते हैं तो उसमें 9 अमेरिकी उद्योगपति या व्यापारी हैं। यह अमेरिका की मजबूत आर्थिक ताकत का सबूत है।
अब इन सभी देशों का जब ऋण देखा जाता है तो वह ट्रिलियन में नजर आता है। आईएमएफ और वल्र्ड बैंक जैसी संस्थाओं से जीडीपी से भी ज्यादा ऋण इन देशों ने उठाया हुआ है। इसी कारण राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अब व्यापार घाटे को कम करने के लिए नये टैरिफ लगा रहे हैं। चाइना हर साल अमेरिका से 300 अरब डॉलर ले जाता है। करीबन 500 अरब का चाइन निर्यात करता है और अमेरिका से आयात करता है सिर्फ 150 अरब का। इस तरह से करीबन 300 अरब डॉलर का घाटा हो रहा है।
इसी तरह से अन्य देशों का मसला है। यूरोप और कनाडा भी इसी का लाभ उठाते आये हैं और अपने देश को विकसित राष्ट्र की कल्पना को साकार कर सके हैं।
भारत को विकसित राष्ट्र का सपना दिखाया जा रहा है। इस सपने को अमेरिका की सहायता के बिना संभव किया जा सकता है? शायद संभव नहीं है। चाइना की जीडीपी भारत से चार गुणा या इससे भी ज्यादा विराट है।
अमेरिका नंबर वन देश है जीडीपी के मामले में। उसकी जीडीपी 34 लाख करोड़ यूएसडी है। चाइना से दो गुणी। चाइना इतना ज्यादा निर्यात करने के बावजूद अभी तक विकसित राष्ट्र नहीं बन पाया है। आज भी वहां पर बेरोजगारी, गरीबी है।
चाइना में वार्षिक आय औसतन प्रति व्यक्ति 5 लाख रुपये है। वहां की मुद्रा में 41 हजार यूआन। भारत में औसतन प्रति परिवार आय इससे आधी है। भारत में आज भी कुपोषण, गरीबी, बेरोजगारी की दर इतनी ज्यादा है कि अगर इस पर आज काम करने के लिए मिशन के रूप में लगें तो अगले 20 साल में हम कुपोषण को भारत से भगा पायेंगे।
कुपोषण से लडऩे के लिए प्रति यूनिट 5 किग्राम गेहूं दिया जाता है। बहुत से राज्य हैं, जिनके दूर-दराज के जिलों में पर्याप्त भोजन की मात्रा नहीं पहुंच रही।
अभी तक कुपोषण से लडऩे के लिए पौष्टिक से भरपूर अन्य सामान उपलब्ध नहीं करवाया जायेगा तो उस समय कुपोषण से लडऩा कहां आसान होगा।
भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में अमेरिका की यात्रा कर यूएसए निर्मित फाइटर प्लेन खरीदने की चाहत रखी थी और गत दिवस रूस, अमेरिका को दर किनार कर फ्रांस से 7 अरब डॉलर के राफेल खरीदने की सहमति दे दी।
इस तरह से मोदी सरकार ने अमेरिका के मुकाबले यूरोप को प्राथमिकता देकर यह संकेत दे दिया कि वह अब यूरोप के रास्ते से ‘विकास यात्रा’ पूरी करेंगे। इस कारण सवाल जन्म ले रहा है कि भारत की विकास यात्रा क्या विकसित राष्ट्र की मंजिल तक बिना अमेरिका के पहुंचा सकेगी। इससे पहले ब्रिक्स देशों ने यूएसडी का ऑपशन तैयार करने का प्रयास किया था।

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