श्रीगंगानगर। अमेरिका में गत 20 जनवरी को सत्ता परिवर्तन हो गया था। जो बाइडेन का कार्यकाल समाप्त हो गया था और 21 को डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन आ गया था। ट्रम्प प्रशासन का ध्यान इस समय अवैध आवर्जन की तरफ है। विदेश नीति की धुरी वहीं अटकी हुई है और अभी तक राजदूतों को बदला नहीं जा सकता है और न ही ऐसी जानकारी है कि जल्दी ही बदलाव होगा।
राष्ट्रपति ट्रम्प ने कार्यभार संभालने के बाद से ही अवैध प्रवासी लोगों को उनके गंतव्य पर पहुंचाने का काम किया। भारत सहित कई देशों में विशेष जहाज भेजकर लोगों को अमेरिका से बाहर कर दिया गया। अब भी हजारों लोगों को गिरफ्तार कर अल सल्वाडोर की कुख्यात जेल में रखा गया है।
सल्वाडोर की जेलों में रखे गये अवैध प्रवासी लोगों के वीडियो भी सोशल मीडिया पर जारी किये गये। इस मामले में जिलास्तरीय जज ने भी ट्रम्प की विदेश नीति में हस्ताक्षेप करने का प्रयास किया। अब संघीय अदालत ने ट्रम्प के पक्ष में निर्णय सुनाया है।
वहीं बहुत से राष्ट्र हैं, जहां पर ट्रम्प प्रशासन ने अपने नजदीकी लोगों को नियुक्त करना था। यह मामला राजदूतों से संबंधित था। भारत सहित विभिन्न राष्ट्रों में अभी भी पूर्व प्रशासन द्वारा नियुक्त किये गये राजदूत शामिल हैं।
अब रिपब्लिकन प्रशासन की नीतियों का प्रचार दुनिया में डेमोक्रेटस कैसे कर सकते हैं। डेमोक्रेट्स इस समय विपक्षी पार्टी है और मांगी गयी सूचनाओं का समय पर नहीं पहुंच पाना इस बात को दर्शाता है कि कहीं न कहीं भारी गड़बड़ है।
बेलारूस क्यों नहीं रूस की कर पा रहा मदद
श्रीगंगानगर। युक्रेन और रूस के युद्ध के तीन साल बीत चुके हैं। तीन सालों में न तो रूस युक्रेन पर कब्जा कर पाया और न ही युक्रेन अपने कब्जों को मुक्त करवा पाया है। दोनों देशों के बीच बस आक्रमण के समाचार पूरे दिन छाये रहते हैं।
युक्रेन की मदद के लिए अमेरिका, यूरोपीय यूनियन, जी-7 के अन्य देश हैं जो सामरिक और आर्थिक शक्ति युक्रेन को दे रहे हैं तो दूसरी ओर रशिया पर लगातार प्रतिबंध लगाये गये हैं। इस बीच सिर्फ बेलारूस ही था जो उसकी मदद कर पा रहा था।
तीन साल गुजरने के बाद अब साफ हो गया कि बेलारूस की कमजोरियां हथियार सप्लाई करने में कम हो गयी हैं। कीव का तो आरोप है कि चाइना के लोग उसके खिलाफ युद्ध में भाग ले रहे हैं। ऐसे लोगों की संख्या 100 से भी ज्यादा है।