श्रीगंगानगर। दो नाव पर एक समय पैर नहीं होने चाहिये। अगर कोई व्यक्ति या राजनेता एक साथ तीन नावों पर सवार हो जाये तो उसके लिए क्या शब्द इस्तेमाल किये जा सकते हैं, यह किताबों में लिखा नहीं गया है।
भारत की विदेश नीति की भले ही टीआरपी के फेर में जोश-खरोश के साथ की जाती है किंतु जब धरातल पर देखते हैं तो वो बहुत ही कमजोर साबित हो जाती है। हालात यह है कि अमेरिका अब विदेश मंत्री के स्थान पर सीधे पीएम से बात करना चाहता है। इसी कारण एक वर्ष के भीतर तीन बार उनको दौरा करना पड़ा।
भारत ने हाल ही में फ्रांस से एक और रक्षा डील करने का निर्णय लिया है। सात बिलियन यूरो अर्थात 63 हजार करोड़ रुपये में 26 राफेल विमान और खरीद रहा है। 2016 में 58 हजार करोड़ रुपये में 36 विमान खरीदे जा रहे थे और अब 26 विमान 63 हजार करोड़ रुपये में खरीदे जायेंगे।
यह विमान उस समय खरीदे जा रहे हैं जब दुनिया बदलते आर्थिक युग में प्रवेश कर रही है। टैरिफ के इस दौर में मंत्रिमंडल की बैठक में नये राफेल खरीदने के लिए समझौता हुआ।
तीन नावों पर कैसे सवार हुए पीएम
भारत इस समय तीन नावों पर सवार है। पहली नाव है अमेरिका (जापान, ऑस्टे्रलिया) के नेतृत्व वाले कवाड संगठन में भारत शामिल है। यह संगठन प्रशांत महासागर में चीन का मुकाबला करने के लिए बनाया गया है। इस संगठन की हर साल शीर्ष बैठक होती है और इस साल भारत में प्रस्तावित है।
मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ब्रिक्स में शामिल है। इस संगठन में चीन भी शामिल है। इसमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान नहीं है। साउथ अफ्रीका, भारत, रशिया, चीन आदि देश शामिल हैं। यह भी समुन्द्री क्षेत्र में आपसी सहयोग और विश्वास बढ़ाने के लिए बनाया गया है।
अब तीसरी नाव प्रधानमंत्री यूरोप के फ्रांस राष्ट्र आदि के साथ मिलकर मनाने की कोशिशों में जुटे हैं। फ्रांस से 2016 में विमान खरीदे गये थे तो उस समय भी शोर मचा था। भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप थे। अब फिर से राफेल विमान खरीद की गयी है। फ्रांस के साथ आईटी सैक्टर में भी सहयोग बढ़ाया जा रहा है।
राफेल का निर्माण करने वाली कंपनी द असाल्ट कुछ वर्ष पहले तक अनजान थी। पांच सालों में इस कंपनी के शेयर अढ़ाई सौ गुणा बढ़ गये। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि इस कंपनी को किस तरह से और कितना मुनाफा पहुंचाया गया, जो निवेशकों का ध्यान आकर्षित करने में कामयाब हो गयी या दूसरे देशों से निवेश यहां तक लाया गया। यह देश एशिया के भी हो सकते हैं।
अमेरिका के साथ तनाव, राजनीति के लिए फ्रांस के साथ मित्रता
भारत की विदेश नीति इस समय सवालों के घेरे में है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प लगातार एशियाई देशों को व्यापार घाटे के लिए जिम्मेदार बता रहे हैं। इस बीच फ्रांस के साथ मित्रता को मजबूत करने के लिए उसके साथ राफेल-राफेल खेल खेला जा रहा है। फ्रांस के पास वीटो पावर है और वीटो पावर यूएन में बहुत काम आती है। अगर पांच राष्ट्रों रूस, अमेरिका, फ्रांस, चीन और ब्रिटेन में से कोई राष्ट्र वीटो का इस्तेमाल कर देता है तो वह प्रस्ताव फिर स्वीकार नहीं किया जाता है। दूसरी ओर चीन के साथ फिर से मित्रता स्थापित की जा रही है जो एलएसी तनाव के कारण बिगड़ गयी थी। चीन के राष्ट्रपति को गुजरात में झूला भी झुलाया गया था।
इस तरह से राफेल के शब्दों को समझा जा सकता है कि 7 अरब डॉलर जैसी रकम के साथ फ्रांस को क्यों प्रसन्न किया जा रहा है। भारत ने 1971 के बाद कोई बड़ा युद्ध नहीं लड़ा है और हाल ही में कोई युद्धकाल भी नहीं चल रहा है।
अब भारत की विदेश नीति तीन नावों पर सवार है। दूसरी ओर अमेरिका भी जान गया है और उसने स्कवायड नामक संगठन बनाने का काम आरंभ कर दिया है इसमें जापान, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों को शामिल किया गया है। भारत इसमें शामिल नहीं है। इससे पहले ब्रिटेन-ऑस्ट्रेलिया के साथ प्रशांत महासागर के लिए ही एक संगठन एयूएसयूके संगठन बनाया गया था।
रूस के राष्ट्रपति पुतिन नहीं आ रहे
रूस के राष्ट्रपति ब्लादीमिर पुतिन को इस वर्ष जनवरी माह में भारत आना था किंतु वे नहीं आए। रशिया और भारत ने मिलकर उत्तर प्रदेश में ऑटो गन बनाने की फैक्ट्री को स्थापित करना था। विदेश नीति का आलम यह है कि जनवरी माह को बीते तीन माह हो चुके हैं और इसके बाद भी पुतिन का पता नहीं है कि वे आयेंगे या नहीं।