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भारत-पाकिस्तान : चार युद्ध लड़े, नतीजा सिफर

श्रीगंगानगर। भारत और पाकिस्तान के बीच 1948 से लेकर 1999 तक चार बार युद्ध हो चुके हैं। फिर कब युद्ध हो जाये, कहा नहीं जा सकता क्योंकि दोनों देशों के बीच राजनीतिक, सामाजिक शत्रुता 1947 से चली आ रही है।
पहला युद्ध कश्मीर को लेकर ही हुआ था। 1948 में पाकिस्तान ने हमला कर कश्मीर का आधा हिस्सा कब्जा लिया था। इसके उपरांत 1965, 1971 में बड़े युद्ध हुए। 1999 में कारगिल युद्ध हुआ, जो एक सीमा आधारित युद्ध था।
अब इन नतीजों से पाकिस्तान को ही फायदा हुआ। भारतीय सेनाओं को जीते हुए रकबा वापिस पाकिस्तान को देना पड़ा और 1947 की रेडक्लीफ सीमा के तहत जीरो लाइन पर वापिस आना पड़ा। 1971 का युद्ध बांग्लादेश को आजाद करवाया गया, इससे भारत को कोई फायदा नहीं हुआ।
वर्ष 1965 और 1971 के युद्ध में दोनों तरफ से लाखों सेना कर्मियों ने भाग लिया था। इस समय जो हालात है, उससे साफ है कि भारत गणराज्य युद्ध करने के लिए तैयार है।
सेना के तीनों अंगों को सीमा के निकट नियुक्त किया जा रहा है और संदेश दिया जा रहा है कि युद्ध होकर रहेगा।
लाहोर के बिना युद्ध का कोई लाभ नहीं
इजरायल को देखा जाये तो वह सीरिया, लेबनान आदि के साथ युद्ध करता है तो उसकी जमीन को भी अपने देश के साथ मिला लेता है और इस तरह से वह अपनी सीमाओं को बढ़ाता जा रहा है। भारत ने चार युद्ध लड़े हैं और इतना खून-खराबा करने के बाद भी हालात खराब बने हुए हैं। नतीजा कोई नहीं निकल पाता।
अगर इस बार युद्ध हुआ तो भारतीय सेना को लाहोर, ननकाना साहिब आदि स्थल को भी अपने साथ मिला लेना चाहिये।
वहीं यह भी सच है कि भारत में भी सेना को राजनीतिक दल अपनी सोच की तरह ही इस्तेमाल करते हैं।
राजनाथ ने कहा था, फिर भूल गये : हाल ही देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था, देश को भीतर और बाहर दोनों से बराबर का खतरा है। यह बयान एक कैबिनेट मंत्री का है। वे सेनाओं के प्रभारी मंत्री हैं और सेना अध्यक्ष उनको ही रिपोर्ट करते हैं।
देश के भीतर और बाहर बराबर का खतरा होने के बावजूद राजनाथ सिंह ने देश के भीतर क्या अभियान चलाया? जिससे देश स्थिर हो सके। खतरे समाप्त हो सकें?
देश के भीतर तो अभियान चलाने के लिए किसी की मदद या एनओसी भी नहीं लेनी पड़ती है। किस तरह का खतरा है, यह भी उन्होंने नहीं बताया।
देश को खतरा है, यही बयां करके इंदिरा गांधी ने 1975 के जून माह में आपातकाल लगा दिया था। इसके बाद भी देश की सुरक्षा के लिए वो काम नहीं किये गये, जो होने चाहिये थे।
उस घटना के 50 साल बाद भी देश का रक्षामंत्री यह बयान देते हैं कि देश को भीतर से भी खतरा है। यह भी नहीं बताते कि कौन सा संगठन, कौन सा राजनीतिक दल या कौन सा टाइकून देश के लिए खतरा बन रहा है। इस खतरे से बचाव के लिए रक्षामंत्री क्या प्रस्ताव लेकर आये?
उस बयान को दिये हुए एक माह या इससे ज्यादा का वक्त हो गया है। अब पाकिस्तान के साथ युद्ध की तैयारियां की जा रही हैं। सेना की मूवमेंट हो रही है। अगर हम पिछले 50 सालों का इतिहास देखें तो सिर्फ एक बार सेनाध्यक्ष ने सरकार के खिलाफ सेना को मैदान में उतरने के आदेश दिये थे। गांधी परिवार की राजनीतिक अपेक्षाओं पर रोकथाम के लिए यह प्रयास किया गया था।
नरेन्द्र मोदी सरकार ने तो अब सेनाध्यक्षों को भी रिटायरमेंट के बाद उनका लाभान्वित करने की योजना ले आये।
बाहरी दुश्मन देश के रूप में तो पाकिस्तान नजर आता है लेकिन घर के अंदर कितने ऐसे लोग हैं जो देश के खिलाफ गतिविधियां चलाये हुए हैं। यह जानकार भी देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षामंत्री चुप हैं तो फिर ..।
मेघालय के राज्यपाल रिटायर्ड जनरल वीके सिंह ही वह अधिकारी थे, जिन्होंने देश की सुरक्षा के लिए सरकार को चेताया था। इसके बाद भी खतरा बना हुआ है तो सेनाध्यक्ष को संसद में बुलाया जाना चाहिये और उनसे इस संबंध में जानकारी ली जानी चाहिये।
कई सोशल एक्टिविस्ट यह बात अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहुंचा चुके हैं कि रक्षामंत्री भी मान रहे हैं कि खतरा है। देश को भीतर से चोट पहुंचाये जाने का खतरा है। पहले देश के भीतर भी सफाई की जानी चाहिये। प्रधानमंत्री कहते हैं कि उनको मिट्टी बना दिया जायेगा। किनको, यह उन्होंने भी नहीं बताया।

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