न्यूयार्क (विद्रोह नहीं सम्राज्य)। भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरमसीमा पर है और 1971 के बाद पहली बार लग रहा है कि भारतीय सेना पाकिस्तान में घुसकर अपना दम-खम प्रदर्शित करने वाली है।
वहीं भारत गणराज्य के विदेश मंत्री का भी एक बयान आया है, जो चर्चा का विषय बन गया है। एस जयशंकर का कहना है कि भारत को उपदेशक नहीं भागीदार चाहिये। दिल्ली के विदेश मंत्री का यह बयान सरकार की नीतियों से भिन्न है। अभी तक तो प्रधानमंत्री स्वयं लोगों को मंत्र और उपदेश सुना रहे थे। सरकार ने कुछ उपदेशकों को जेल से इसलिए बाहर निकाला क्योंकि उनको चुनावों में वोट चाहिये थे। उसी सरकार के मंत्री कहते हैं कि हमें उपदेशक नहीं चाहिये।
भारत में लाखों या इससे भी ज्यादा लोग उपदेशक बनकर श्रीमद् भागवत कथा और अन्य पुराण का प्रचार करते हैं। क्या वे उपदेशक नहीं है? क्या भारत सरकार उनको रोकने वाली है?
दक्षिण एशिया में तनाव को देखकर संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद के दूतों ने बंद कमरे में भारत-पाकिस्तान पर वार्ता करने का निर्णय लिया है। दिल्ली और इस्लामाबाद के दूत इसमें शामिल होंगे, इसकी जानकारी नहीं मिल पायी है।
उत्तरी भारत के पंजाब राज्य, जो पाकिस्तान के साथ सीमा को सांझा करता है, में युद्ध से पूर्व की तैयारियों के लिए रिहर्सल आरंभ हो गयी है। फिरोजपुर में सेना और प्रशासन के संयुक्त आह्वान पर रात को आधा घंटा के लिए ब्लैक आउट किया गया। पूरे शहर को अंधेरे में रखा गया।
श्रीगंगानगर जिले में अभी तक इस तरह की परिस्थिति को नहीं अपनाया गया है।
ध्यान रहे कि युद्ध के समय मार्शल लॉ भी लागू हो सकता है और उस समय सभी अधिकारों को सीमित कर दिया जायेगा। आपातकाल की घोषणा राष्ट्रपति कैबिनेट की सलाह पर करते हैं। इस तरह से दिल्ली में भी हलचल काफी तेज है। पाकिस्तान अपने परंपरागत मित्रों के साथ चर्चा कर रहा है तो भारत को कई मजबूत राष्ट्रों का समर्थन हासिल हो रहा है।
विश्व की दो प्रमुख महाशक्तियों रूस और अमेरिका ने अभी तक चुप्पी साध रखी है। यह देश आतंकवाद के खिलाफ तो बयान देते हैं लेकिन किस देश का समर्थन करने वाले हैं, यह बात को छुपाया हुआ है।