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नई दिल्ली के साथ कौनसी वीटो पावर है?

श्रीगंगानगर। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के परिवार के साथ पिछले 6 सालों से अटैच हूं। मुलाकात नहीं हुई लेकिन ये दिल के रिश्ते हैं और उस विश्वास पर आपको यह समाचार दे रहा हूं कि आज नई दिल्ली के साथ कोई वीटो पावर नहीं है।
ताजा मामला देखिये, पाकिस्तान के साथ चल रहे युद्ध के दौरान सिर्फ रॉफेल की बात हो रही है क्योंकि इन विमानों को मोदी सरकार ने खरीद किया था। इससे पहले सुखाई, मिराज 2000, मिग सीरिज के विमान भी युद्ध के मैदान में हैं, लेकिन इन विमानों को पूर्ववर्ती सरकारों ने ही खरीद किया था। इस कारण इन विमानों की चर्चा नहीं हो रही।
रूस से निर्मित विमान जो दशकों से भारतीय सेना को जीत दिलाते रहे हैं, उनका कहीं नाम नहीं लिया जा रहा। वहीं एक आश्चर्यचकित जानकारी यह भी है कि अमेरिका ने माना है कि पाकिस्तान के साथ चल रहे युद्ध के दौरान भारत के दो रॉफेल मार दिये गये हैँ। अमेरिका के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस बात की तस्दीक की है और यह बयान रॉयटर ने भी प्रकाशित किया था।
भारत गणराज्य की सरकार रूस के साथ वर्षों से दोस्ती किये हुए हैं और समय-समय पर रूस भारत को मजबूत सुरक्षा का कवच भी देता रहा था और इसी कारण पूर्वी पाकिस्तान जिसे अब बांग्लादेश कहा जाता है, में 90 हजार पाक सैनिकों के सिरेंडर करवाये जाने में मुख्य भूमिका थी।
वर्ष 2014 से 2021 तक अगर किसी व्यक्ति को मोदी का सर्वोच्च भगत का तगमा दिये जाने की वकालत की जाये तो उसमें इस संवाददाता का नाम प्रमुखता से लिया जायेगा। 8 सालों में मोदी जी ने नोटबंदी करवा दी। आतंकवाद खत्म नहीं हुआ। कोराना काल में शहर बंद करवा दिये, लेकिन रोंहिग्या या बांग्लादेशी देश छोडक़र नहीं गये। बांग्लादेशियों के लिए नया एक्ट भी बनवा दिया लेकिन लाखों बांग्लादेशियों की पहचान नहीं की गयी। अब भी जनगणना नहीं करवायी जा रही क्योंकि बांग्लादेशियों को नागरिकता मिल जायेगी या उनको देश से बाहर भेजना होगा और यह सरकार दोनों में से एक भी आग्रह स्वीकार नहीं करती है।
इस समय मोदी सरकार जो युद्ध चला रही है, उसमें एक भी वीटो पावर वाला देश नई दिल्ली की मौजूदा सरकार के साथ नहीं है। राफेल की सेल करने वाला फ्रांस भी कहता है कि हम रूस के साथ नहीं हैं। हम यूक्रेन के साथ हैं।
चाइना और रूस दो दिनों से क्रेमलिन में एक समारोह में शिरकत कर रहे थे। रूस ने भारत सरकार को निमंत्रण तो भेजा लेकिन यह भी संदेश भिजवा दिया कि वह उनको पहली पंक्ति में शामिल नहीं करेगा।
भारत की विदेश नीति किसी को समझ नहीं आ रही थी। ब्रिक्स और कवाड दोनों में भारत सरकार शामिल थी। एक तरफ कवाड में चीन की खिलाफत की जा रही थी तो दूसरी ओर ब्रिक्स में यूएस की अर्थव्यवस्था को ही पलीता लगाये जाने की तैयारी की जा रही थी। इस तरह से भारत न तो ए में था और न ही बी में।
डोनाल्ड ट्रम्प की धमकियों या चेतावनियों के बाद ब्रिक्स डॉलर लाने से इन्कार कर दिया। वहीं ट्रम्प ने क्वाड के लिए नये सहयोगी भी तलाश लिये। प्रशांत हिंद महासागर की सुरक्षा के लिए नया संगठन बनाकर उन्होंने दुनिया को संदेश दे दिया।
गुरुवार को अमेरिका ने साफ कर दिया था कि भारत-पाकिस्तान युद्ध में वह शामिल नहीं होगा और शनिवार को भारत मान गया कि वह युद्ध विराम के लिए तैयार है।
पीएम ने कहा था कि पहलगाम के आतंकियों को मिट्टी में मिला दिया जायेगा। ऐसा कुछ नहीं हुआ था और युद्ध विराम हो गया।
इसकी घोषणा की जिम्मेदारी भी ट्रम्प को दी गयी।
दूसरी ओर चीन ने पूरा खेल ही बिगाड़ दिया। पाकिस्तान को पूर्ण समर्थन का वादा कर दिया। इससे बैकफीट पर खेल रहा पाकिस्तान अचानक ही बाउंस को भी फ्रंटफुट पर खेलने लगा। जिधर चीन और उधर रूस।
रूस ने अपनी 80 विजय वर्षगांठ मनायी और उसमें भारत देश के शासनाध्यक्ष को नहीं शामिल किया गया। यह अपने आप में बहुत कुछ कहती है।
जिसको टीवी पर आपने कूटनीति शब्द को सुना होगा, उसका प्रमाण है कि मोदी को पुतिन ने नहीं बुलाया।
एस 400 मिसाइल रोधी का भी प्रचार किया जा रहा है ताकि पुतिन को किसी तरह से राजी किया जा सके। लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है। पुतिन ने इस वर्ष जनवरी में आना था किंतु उन्होंने आमंत्रण स्वीकार नहीं किया। इस साल के अंत में कवाड का शिखर सम्मेलन भारत में होना है, उस समय ट्रम्प आयेंगे? ट्रम्प नहीं आयेंगे इसका उत्तर आपको इसी समय मिल रहा है।
संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, फ्रांस, रूस यह चार देश अब नई दिल्ली की मौजूदा सरकार से दूर हो रहे हैं।
यह सैनिकों का मनोबल को प्रभावित करने वाला समाचार नहीं है बल्कि उनकी आने वाली अंश-वंश के उत्थान के लिए समाचार है।
भारत गणराज्य की सरकार सोशल सिक्योरिटी को भूलती ही जा रही है। विदेशी देशों का सहयोग नहीं मिल पाने के कारण 150 लाख करोड़ डॉलर का लोन उठाया गया, यह लोन कहां गया? अब कजा सकता है कि सडक़ें बनवायीं। 50 लाख करोड़ से 10 सालों के भीतर देश पर ऋण 200 लाख करोड़ डॉलर हो गया।
ट्रम्प ने चेतावनी भी दी थी
एक राज्याध्यक्ष का नाम लिये बिना राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक चेतावनी भी दी थी। उन्होंने कहा था एंथोनी उनके मित्र हैं और वह उनको चि_ी-पत्री का काम करवाना चाहते हैं। इसी से समझा जा सकता है कि जो ऋण लिये गये, वह सोशल सिक्योरिटी के काम नहीं आये। ब्यूरोक्रेट्स, न्यायपालिका, अन्य संवैधानिक संस्थान सभी को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया गया।
जिस व्यक्ति को ट्रम्प ने कहा, वह उनको डाकसेवा का काम देना चाहते हैं, उस व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा के लिए वे आयेंगे? ध्यान से समझीयेगा।

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