श्रीगंगानगर। सौगंध है माटी की, देश को मिटने नहीं दूंगा, देश को झुकने नहीं दूंगा, देश को बिकने नहीं दूंगा…। वीर रस की यह कविता 2014 में चर्चा में आयी थी और 2025 में एक बार फिर इसको सोशल मीडिया पर वायरल किया गया।
पहलगाम वारदात के बाद आतंकियों को माटी में मिलाने की शपथ भी ली गयी। कल्पना से भी बड़ा बदला लेने का संकल्प लिया गया। तीन दिन तक भारत-पाक फायरिंग भी करते रहे और अंत में नतीजा क्या निकला।
अब डोनाल्ड ट्रम्प ने निर्णय लिया है कि वह 1 हजार साल पुरानी कश्मीर समस्या का समाधान के लिए दोनों देशों की मदद करेंगे। जवाहरलाल नेहरू की आलोचना इसलिए होती रही थी कि वे कश्मीर का मुद्दा यूएन ले गये थे।
आजादी के 78 सालों बाद भी हम कश्मीर का मसला हल नहीं कर पाये हैं। 1972 के शिमला शांति समझौते के बाद भी दोनों देश एक टेबल पर बैठ नहीं पाये, जिससे कश्मीर का हल निकाला जा सकता हो।
78 सालों में चार जंग की गयी और अनेक बार स्ट्राइक भी की गयी। न कश्मीर मुद्दे का हल निकला। न अखण्ड भारत के लिए वार्ता का माहौल तैयार किया जा सका।
जो भी सरकार आयी, उसने अपनी डफली अपना राग गाया। इस तरह से कश्मीर आज भी वहीं हैं, जहां आजादी के समय जवाहरलाल नेहरू छोड़ गये थे।
1971 की जंग के समय इंदिरा गांधी ने पाक के खिलाफ दोनों मोर्चो को खोल दिया था, इसके बाद भी वे आधे कश्मीर अर्थात पीओके को अपने साथ नहीं मिला पाये।
नई दिल्ली के सीइओ संसद में तो कसम खाते हैं, लेकिन बाहर आकर भूल जाते हैं। अगर पीओके को वापिस नहीं लिया जा सकता तो वहां एलओसी की जगह बॉर्डर घोषित कर दिया जाये ताकि समस्या का आधा हल तो निकले। दो-चार साल बाद इस तरह की कार्यवाही नहीं हो पायेगी, जिस तरह की हाल ही में तीन-चार दिन हुई है।
कई एनजीओ ने एलान कर दिया था कि कराची को घेर लिया गया है। इस्लामाबाद पर फतेह पा ली गयी है। हुआ ऐसा कुछ भी नहीं।