न्यूयार्क। सत्ता का नशा सिर पर चढक़र बौलता है, वह भी तब जब अपनी कमजोरियों के बावजूद लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल हो जाये। चौथी बार की सत्ता के लिए जातिय समीकरण और मुस्लिमों की ओर पासे फेंकना भी शामिल है।
यह जगजाहिर है कि कश्मीर हो या हिन्दुस्तान का अन्य हिस्सा, चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को मुस्लिम वोटर्स से निराशा हाथ लगती रही है लेकिन 2029 की तैयारियों में उस वर्ग के वोटों को अपने पासे में लाने की पूरी तैयारी दिख रही है।
भारत सरकार ने जातिगत जनगणना के आदेश दे दिये हैं और 2029 का लोकसभा चुनाव में यह अहम मुद्दा होगा। इस मुद्दे को भुनाने वाले को सफलता हासिल होनी तय है।
अब आगे देखा जाये तो इस समय भारत और अमेरिका की चर्चा पूरी दुनिया में हो रही है। हाल ही में संक्षिप्त भारत-पाक युद्ध के दौरान एस-400 की चर्चा हो रही थी तो अमेरिका ने आगामी युद्ध की आशंकाओं को देखते हुए अमेरिका को उन्नत हवाई सुरक्षा के लिए तैयारी कर ली है और सेना के एक महानिदेशक को इसके लिए नामित भी कर दिया है।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने गोल्डन डोम के नाम से एक नयी परियोजना को मंजूरी प्रदान की है जिस पर 170 अरब डॉलर खर्च किये जायेंगे। यह आकाशीय सुरक्षा प्रणाली होगी। अभी तक इस तरह की सुरक्षा प्रणाली अमेरिका की मदद से इजरायल ने ही तैयार की थी किंतु यह उससे भी कहीं उन्नत बनायी जायेगी। इस परियोजना के माध्यम से अमेरिका में प्रवेश करने वाली किसी भी मिसाइली हमले को समयपूर्व ही खत्म किया जा सकेगा।
अभी तक का विवरण इसलिए दिया गया है ताकि आगे के समाचार को गंभीरतापूर्वक समझा जा सके।
रिश्तों की जब बात होती है तो अमेरिका-भारत के बीच चल रही खींचतान को लेकर भी दुनिया का ध्यान आकर्षित हो जाता है। भारत गणराज्य की सरकार के शुभचिंतकों ने ट्रम्प की टीआरपी को प्रभावित करने के लिए प्राइवेट कंपनी मूडीज क्रेडिट रेटिंग से अमेरिका की ट्रिपल ए की रेटिंग को गिरवाकर डबल ए1 करवा दिया। इससे अमेरिका पर किसी भी तरह का कोई फर्क नहीं पडऩा था और न ही हुआ।
अब अगली बारी अमेरिका की थी तो अमेरिका ने पीएसएलवी की उड़ान में मदद करने से इन्कार कर दिया। भारत गणराज्य की सरकार पीएसएलवी रॉकेट से एक जासूसी उपग्रह को अंतरिक्ष में स्थापित करना चाहती थी। इसमें अमेरिका की मदद आवश्यक थी किंतु खटास भरे संबंधों के चलते अमेरिका ने इन्कार कर दिया और पीएसएलवी रॉकेट तीसरे चरण में भटक गया और भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी का प्रयास विफल हो गया।
‘अबकी बार ट्रम्प सरकार’
वर्ष 2019 में अमेरिका दौरे के दौरान हाउडी मोदी कार्यक्रम आयोजित किया गया था और इसमें नरेन्द्र मोदी ने 2020 के चुनावों के लिए नारा दिया था कि अबकी बार फिर से ट्रम्प सरकार। 2020 के नवंबर में हुए चुनाव में जो बाइडेन को विजेता घोषित किया गया और बाइडेन-हैरिस प्रशासन स्थापित हुआ। 2021 के अमेरिका दौरे के दौरान वीपी कमला हैरिस और नरेन्द्र मोदी व्हाइट हाउस के टॉप फ्लोर पर वार्ता कर रहे थे और इसका सीधा प्रसारण भारतीय मीडिया में हो रहा था। बाइडेन-हैरिस प्रशासन के दौरान नरेन्द्र मोदी ने ट्रम्प को बार-बार अनदेखा किया।
2024 के चुनावों में भी वे ट्रम्प से मिलने के लिए नहीं गये जबकि अमेरिका यात्रा करने वाले फ्रांस के राष्ट्रपति, यूक्रेन के राष्ट्रपति सहित कई अन्य अंतरराष्ट्रीय नेताओं ने हैरिस और ट्रम्प दोनों से मुलाकात की थी क्योंकि उस समय हैरिस वीपी थीं।
बाइडेन-हैरिस प्रशासन के दौरान आटोपेन की अब भी चर्चा हो रही है और इसकी जांच भी करवायी जा रही है। अमेरिका में जो कुछ हो रहा था उसकी एक-एक पुस्तिका को एजेंसियां खंगाल रही है। अगर मीडिया के कुछ सूत्रों की मानें तो भाजपा के कुछ नेताओं को लग रहा था कि हैरिस जीत जायेंगी और इस कारण ट्रम्प की अनदेखी की गयी और आखिर में नतीजा ट्रम्प की जीत के रूप में सामने आया। वे भारी बहुमत से विजय हासिल करने में कामयाब हो गये।
ट्रम्प ला रहे हैं द वन बिग, ब्यूटीफुल बिल!
अमेरिका की राजनीति में गर्मी छायी हुई है। टेकन इट डाउन बिल को संसद के दोनों सदनों ने पारित कर दिया है। इस विधेयक के लिए प्रथम महिला मेलिना ने भी लॉबिंग की थी और इस तरह से यह कानून बन गया।
ट्रम्प प्रशासन की नजर अब द वन बिग, ब्यूटीफुल कानून पर है। रिपब्लिकन सांसदों से इस बिल को पारित किये जाने का आह्वान किया जा रहा है। अगर यह विधेयक पारित हो जाता है तो मोदी सरकार की परेशानियों में इजाफा हो सकता है।
इसका सीधा असर मोदी सरकार पर पडऩा तय है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प विश्व से यह भी आह्वान कर रहे हैं कि अप्रांसगिक हो चुके डब्ल्यूएचओ से बाहर निकलकर उनके नेतृत्व में बनने वाले वैश्विक स्वास्थ्य संगठन से जुड़ें। ट्रम्प ने कार्यभार संभालने के पश्चात जनवरी में ही विश्व स्वास्थ्य संगठन से बाहर निकलने का एलान किया था और अब वे वैकल्पिक विश्व स्वास्थ्य संगठन बनाना चाहते हैं वल्र्ड बैंक की तरह।
ट्रम्प ने साफ संकेत दे दिये हैं कि अमेरिका से अगर आर्थिक मदद चाहिये तो संयुक्त राज्य के बताये गये मार्ग पर ही चलना होगा। उन्होंने हारवर्ड यूनिवर्सिटी को मिलने वाली सहायता राशि को भी रोक दिया है क्योंकि यह वैश्विक स्तर पर वामपंथी विचारधारा को जन्म देती थी, जैसा कि ट्रम्प प्रशासन का आरोप है।
भले ही दुनिया के कुछ नेता मान रहे हों कि अभी भी उनके पास इक्का है लेकिन ट्रम्प का मानना है कि हुकूम का इक्का तो उनके पास है।