श्रीगंगानगर। एक मीडिया रिपोर्ट ने पूरे देश को चौंका दिया है। भारत पब्लिक सैक्टर के बैंकों को विदेशी कंपनियों के हाथों में सौंपने की तैयारी कर रहा है। जापान की एक कंपनी ने यस बैंक में 20 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदकर इसकी शुरुआत भी कर दी है।
देश के हवाई कंपनी और एयरपोर्ट को निजी कंपनियों के हाथों में सौंपे जाने के बाद अब सरकारी क्षेत्र के बैंकों को भी प्राइवेट हाथों में दिये जाने की तैयारी कर ली गयी है।
देश में पहले बैंकों का विलय किया गया, जिसके बारे में बयान दिया गया था कि बैंकों को विराट रूप दिया जा रहा है ताकि वे विदेशी बैंकों के साथ मुकाबला कर सकें। इन विशाल बैंकों से मौजूदा सरकार ने ऋण स्वयं भी लिये और अपने मित्रों को भी दिलाये ताकि वे भी ‘विशाल’ रूप धारण कर सकें।
अब यह समाचार तेजी से प्रचारित हो रहा है कि सरकारी बैंकों की सम्पत्तियों को विदेशी बैंकों के हवाले किया जायेगा। ध्यान रहे कि प्राइवेट या विदेशी बैंक विशेष व्यक्तियों के लिए संचालित होते हैं इसमें 10 हजार से 1 लाख रुपये तक हर समय राशि जमा रहनी चाहिये। जैसे ही राशि कम हुई, सरकार मिनिमम बैलेंस कम होने का दावा करते हुए एक निर्धारित राशि को बैंकों से निकालकर उसको पैनल्टी का नाम दे देती है।
80 हजार करोड़ रुपये सरकारी बैंकों से निकले
यह भी ध्यान देना होगा कि सरकारी बयान के अनुसार 80 हजार करोड़ रुपये सरकार ने विभिन्न बैंकों से मिनिमम बैलेंस नहीं होने के कारण पिछले कुछ सालों के दौरान जब्त किये हैं। इसी तरह से प्राइवेट या विदेशी बैंकों की शर्तें तो और भी कड़ी होंगी। उनका पालन करना एक आम भारतीय के लिए आसान नहीं होगा।
बैंकों से दूर हो जायेंगे गरीब बंदे
सरकार ने 2014 के बाद अनेक नयी शर्तों को लागू किया है जिसमें एक निर्धारित टाइम तक ही एटीएम कार्ड का इस्तेमाल किया जाता है। एटीएम मशीन में इससे ज्यादा बार ट्रांसजैक्शन होती है तो उसकी पैनल्टी अलग से लगायी जाती है। इस कारण एटीएम और चैकबुक से तो आम आदमी दूर हो रहा है।
गरीब बंदों के लिए बड़े बैंकों में खाते खुलवाना या उसको सक्रिय रखना आसान कार्य नहीं होगा। एक दिन राशि कम हुई तो पैनल्टी तय है।
बैंकर्स ने 1.60 लाख करोड़ रुपये के लोन दिये हैं
सरकार के मित्रों को किस प्रकार का फायदा पहुंचाया गया है, इसकी बानगी इन चंद लाइनों से भी सामने आ जायेगी।
सरकार के बांटे गये लोन तथ्यों की समीक्षा करें तो किसानों को करीबन 20 लाख करोड़ के ऋण विभिन्न मद में दिये गये हैं। यह तब है जब हम मानते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है। 90 प्रतिशत से ज्यादा किसानों के जमीनी कागजात बैंकों में हैं।
इसी प्रकार एमएसएमई को देखें तो करीबन 50 लाख करोड़ के ऋण विभिन्न क्षेत्र के कंपनियों का दिये गये हैं। कृषि और एमएसएमई सैक्टर को करीन 70 लाख करोड़ करोड़ के ऋण दिये गये हैं।
अब आगे का दृश्य देखेंगे तो आप भी हैरान रह जायेंगे कि जिन लोगों का बड़ा उद्योगपति माना जाता है उनको 100 लाख करोड़ या इससे ज्यादा का ऋण बांटे गये हैं। सरकार ने इस प्रकार अमीर-गरीब की खाई को बढ़ाया है। अपने नजदीकी लोगों को जरूरत से ज्यादा ऋण दिये गये हैं।
इन 100 लाख करोड़ के अतिरिक्त विदेशी संस्थाओं से इन लोगों को लोन दिलाये गये हैं। कुछ ट्रस्टीज कंपनियां भी हैं, जिनका हिसाब -किताब आरबीआई के पास नहीं है। इस तरह से एक्सिस, एसबीआई, पीएनबी ट्रस्टीज ने भी लाखों करोड़ के ऋण दिये हैं।