झुंझुनूं (सुरेन्द्र बांगड़वा)। झुंझुनूं नगर परिषद में आयुक्त अनिता खीचड़ के खिलाफ पार्षदों का धरना समझाइश-आश्वासन के बाद भले ही समाप्त हो गया हो लेकिन इससे नगर परिषद में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लग पाया है। आयुक्त के खिलाफ अगर सरकारी जांच के दस्तावेजों को खंगाला जाये तो बहुत कुछ सामने आता है।
उसके उपरांत आयुक्त खीचड़ को फील्ड पोस्टिंग नहीं मिलनी चाहिये थी। अगर यह पोस्टिंग मिली है तो इससे राज्य सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े होते हैं। मुख्यमंत्री भजनलाल जनता को भ्रष्टाचार मुक्त शासन-प्रशासन देने का वादा करते हैं तो दूसरी ओर भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की गिरफ्त में रंगे हाथ आई आयुक्त को कैसे झुंझुनूं का पुन: पद मिल गया, जबकि वह इससे पहले भी यहां रहकर कई कारनामे दिखा चुकी हैं। पूर्वकाल में जब तत्कालीन कलक्टर के आदेश पर एसडीएम शैलेश खैरवा ने जांच की थी तो उस समय सामने आया था कि आयुक्त अनिता खीचड़ ने मो. सलीम के आवेदन पर 89.28 गज का पट्टा विलेख 15 मार्च 2021 को जारी कर दिया।
दस्तावेजों के अनुसार इसमें 89.28 गज का जो पट्टा दिया गया उसमें परिषद की जमीन और खुला चौक था। एक चौक की जमीन का पट्टा ही जारी कर दिया गया। इसी से अनुमान लगाया जा सकता कि आयुक्त किस तरह का प्रशासन नगर परिषद को दे रही हैं।
20 जून को पार्षदों ने तीन दिनों तक आयुक्त के खिलाफ धरना दिया था और उस समय भाजपा नेताओं के आश्वासन के उपरांत आंदोलन को स्थगित कर दिया गया था किंतु इसके उपरांत भी न तो आयुक्त का तबादला हुआ और न ही आरोपों पर जांच की गयी। सरकारी दस्तावेज बताते हैं कि आयुक्त अनिता खीचड़ के खिलाफ लोकायुक्त के आदेश पर भी जांच हुई थी और उसमें भी वह आरोपित पायी गयी थीं।
मामला हाइकोर्ट में भी भ्रष्टाचार के मामले में चल रहा है। एसीबी भी टोंक में आयुक्त रहते हुए अनिता को दो अन्य लोगों के साथ एक लाख की रिश्वत लेते 18 फरवरी 2023 को गिरफ्तार किया गया था। इन दस्तावेजों का हर पन्ना बताता है कि भ्रष्टाचार और अनिता खीचड़ का गहरा संबंध रहा है। एक आरोप सिर्फ आरोप लगाने के लिए होते हैं तो दूसरी ओर आरोप दस्तावेजों के साथ होते हैं। यह तथ्य बताते हैं कि राज्य सरकार को भ्रष्टाचार के मामले में अपनी नीति को पुन:विचार करने की आवश्यकता है।