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पटियाला रियासत नहीं चाहती कि बुद्धा नाला+सतलुज स्वच्छ हो

श्रीगंगानगर। गत 12 सितंबर 2018 को संवाददाता ने पंजाब सचिवालय में जाकर धरना दिया था। अंदर दिये गये धरने को पुलिस की मदद से बाहर स्थानांतरित कर दिया गया। संवाददाता ने श्रीगंगानगर और मालवा इलाके में फैल रहे जहर को लेकर यह धरना दिया था और मांग की थी कि बुद्धा नाला को स्वच्छ किया जाये। उस समय पंजाब राज्य के सीएम थे, कैप्टन अमरिन्द्रसिंह। उनको व उनकी सरकार के नुमांइदो को इस बात की जानकारी थी कि मैं धरना देने के लिए आ रहा हूं, लेकिन यह लोग वहां से लापता हो गये थे। सचिवालय के बाहर आईबी, चण्डीगढ़ पुलिस के अधिकारी थे।
सात वर्ष का लम्बा समय बीत गया है, इस अवधि के बाद तीन सीएम बदल गये, लेकिन समस्या जस की तस है। कोई इस समस्या का समाधान करने या तलाशने की तरफ ध्यान ही नहीं दे रहा है।
अब इसी समाचार को अगर अंतरराष्ट्रीय नजर से देखा जाये तो इस समय सीरिया में गृह युद्ध चल रहा है। तानाशाह असद अल बशर रूस की शरण में हैं किंतु उनके समर्थक अभी भी उसी प्रकार की रणनीति बनाये हुए हैं। रूस ने अपने सैन्य हवाई अड्डों को हटाने का कार्य आरंभ कर दिया है।
अगर इसको इतिहास के पन्नों के अनुसार समाचार बनाया जाये तो पंजाब की पटियाला रियासत, जो चण्डीगढ़ से महज 50 किमी की दूरी पर है।
उस रियासत के महाराजा अमरिन्द्रसिंह जो पंजाब के मुख्यमंत्री, केन्द्र सरकार में मंत्री और सांसद रहे हैं। अमरिन्द्रसिंह सिर्फ एक छोटे से सम्पन्न राज्य के सीएम और एक मंत्री हैं या इससे भी ज्यादा हैं।
अमरिन्द्रसिंह वो इंसान हैं, जिसको सीरिया का राष्ट्रपति असद अल बशर कहा जाता है। इसको इस तरह से भी पढ़ा जा सकता है कि वे शिरोमणी अकाली दल के सर्वेसर्वा हैं। हरियाणा राज्य और राजस्थान के एक बड़े हिस्से पर भी उनकी रियासतकाल रही है। इस तरह से वे आज भी लोकतंत्र देश में स्वयं को महाराजा के रूप में पेश करते हुए अपने पुराने अधिकारों को बनाये हुए हैं। जो पढ़ाया गया, दिखाया गया, वह सब झूठ था और राजाओं की रियासत के अधिकार आज भी कायम हैं।
अब अगर बुद्धानाला की समस्या के समाधान की बात करें तो इस समय ईटली, फ्रांस, ब्रिटेन और फ्रांस तथा राजस्थान के कुछ राजघराने इस समस्या का समाधान नहीं चाहते हैं। इस समस्या का समाधान न दिल्ली के पास है न राजस्थान और न ही पंजाब सरकार के पास। यह तीन रियासतों पटियाला, जयपुर और ब्रिटेन की रियासतों की आपसी सांठगांठ का मामला है। इसमें ईटली और फ्रांस इसलिए सहयोग करते हैं क्योंकि इनमें भारतवंश के शाही परिवारों और प्रमुख राजनीतिज्ञों के अरबों-खरबों डॉलर निवेश है और यह विकसित राष्ट्र भारतीय मजदूरों, मीडिल क्लास से सींचे गये धन से बनाये गये हैं। जहां पर अब युवाओं को गुलाम बनने के लिए भेजा जा रहा है।

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